मैं तो बैठा अभी तक उसी मोड़ पर
छोड़ कर जिस जगह तुम गए थे कभी
राह को तेरे तकता रहा मैं खड़ा
लौट कर के ना आए तू फिर से कभी
मैंने तुमसे कहा तुम बहो भाव में
धार बनकर नदी की तू बहने लगे
धार देने को मैं तो किनारा बना
काटकर तू किनारे को बहने लगे
क्या इसी के लिए मैं सहारा बना
भाव में डूब आंसू यह कहने लगे
ख्वाब में जो तू आई कभी रात में
तुमको पा जाऊं नजरें ये कहने लगी
प्रेम मे ठहरा दिल मेरा दरिया बना
छू के लहरें दिलों में उठाने लगी
मिट ये जाती दिलों की तो सारी तपन
तेरी यादें अगर ना सताती कभी
तू ही मेरी सुबह तू मेरी शाम थी
रात की अब सहेली तू बनने लगी
दर्द इतना दिया आज तूने मुझे
गम का झरना दिलों में बसाने लगी
देख सच को जो समझा यही जिंदगी
आंख मेरी भरी की भरी रह गई
होती कितनी कठिन प्रेम की साधना
भाव में डूब करके समझने लगे
प्रेम में सारा जीवन ये कैसे बीते
अब हुनर इसका भी सीखने हम लगे
एक सीढ़ी उमर की जो फिर कम हुई
खलबली दिल की मेरे तो बढ़ने लगी
पी गई जिस्म का मेरे सारा लहू
फिर भी प्यासी सी ए जिंदगी रह गई
रचनाकार
Author
गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |