उम्र बस थोड़ी बची है काम बाक़ी हैं बहुत ।
एक था आग़ाज़ पर अंजाम बाक़ी हैं बहुत ।
यूँ रिहा हूँ अब मैं तेरी क़ैद ए उल्फ़त से मगर ।
अब भी मेरे नाम पर इलज़ाम बाक़ी हैं बहुत ।
यूँ कई तमगे दिए हैं तूने मुझको उम्र भर ।
ज़िन्दगी मेरे अभी ईनाम बाक़ी हैं बहुत ।
तिशनगी अपने लबों पर ले के जाते हो कहाँ ।
ज़िन्दगी के मयक़दे में जाम बाक़ी हैं बहुत ।
आँसुओं के ख़त मिले हैं अब तलक तुमको मगर ।
उसके होठों पर अभी पैग़ाम बाक़ी हैं बहुत ।
क्यों अभी हथियार रखते हो यहाँ “कमलेश ” तुम ।
उम्र के उस पार भी संग्राम बाक़ी हैं बहुत ।
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