उपकार हुआ अपकार(कहानी)

मालिनी अभी शहर में नयी-नयी आयी थी। उसे शहर तथा वहाँ के लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वह तो ठहरी गाँव की भोली – भाली औरत, उसे शहर के दाँव-पेंच का ज्ञान भला कहाँ था। मालिनी एक रेलवे हास्पिटल के डाक्टर की पत्नी थी। डाक्टर साहब दिन-भर हास्पिटल में रहते और मरीजों को देखते, मालिनी के पास समय देने का फुर्सत भी नहीं था। कभी – कभार रात को भी डाक्टर साहब को मरीज देखने जाना पड़ जाता था। मालिनी मन मसोस कर रह जाती। बेचारी कुछ कह भी नहीं सकती थी। क्योंकि डाक्टरी ही उनकी रोजी-रोटी थी।

एक दिन मालिनी संध्या के समय सब्जी लेने बाजार गयी। सब्जी के दुकान पर उसकी मुलाकात रत्ना से हो जाती है। रत्ना बड़ी चालाक किस्म की औरत थी। उसने मालिनी से कहा- बहन अभी जल्दी ही गांव से शहर आयी हो. ऐसा देखने से लग रहा है। मालिनी ने कहा-बहन आपका अनुमान बिल्कुल सही है। रत्ना ने पूछा – आपका क्या नाम है और किस मुहल्ले में रहती हो? बहन मेरा नाम मालिनी है मै बौलिया रेलवे कालोनी में रहती हूँ तथा मेरे पति रेलवे में डाक्टर हैं। बहुत अच्छा बहन मेरा नाम रत्ना है, मै आपके बगल निराला नगर कालोनी में रहती हूँ। सो मैं नसीब की मारी हूँ, मेरे पति फुल्की का ठेला लगाते थे पर? मालिनी ने पूछा बहन तो अब कहाँ हैं? रत्ना के आँखों में आँसू भर आया, गला रुध सा गया, और कही अब वे भगवान के पास हैं। मैं उनकी बेवा हूँ तथा एक लड़का भी है मेरा, उसी का पालन- पोषण कर रही हूँ। लोंगों के घर चौका – पोंछा करके अपना जीवन निर्वाह कर रही हूँ। यदि आपको जरूरत होगा तो बताइएगा। यह कहकर रत्ना आँखों में आँसू लिए चल दी।

मालिनी के हृदय में बार-बार रत्ना के दुखभरी बात बरसात के बादल के तरह उठते और समाप्त हो जाते। मालिनी मन में सोंच रही थी कि भगवान भी कैसा है की हरचीज सबकी पूरा नहीं करता, मेरे पास सब कुछ है पर आज तक मेरी गोद सूनी ही है। यही सब विचार करते हुए मालिनी अपने रूम पर आ गयी। थोड़ी देर बाद डाक्टर सहब भी आ गये, मालिनी चाय बनाकर लायी तथा दोनों लोग गरमा – गरम चाय का आनंद लेने लगे। मालिनी ने रत्ना की सारी कहानी डाक्टर साहब को बताया और कहा – यदि कहें तो उसको काम करने के लिए रख लें, क्योंकि अब मुझसे अधिक काम नहीं होता। डाक्टर साहब ने मुस्कराते हुए कहा – महारानी जी आपकी जैसी मर्जी। औरत वैसे दयालु स्वभाव की होती ही हैं जो दूसरे का दुख भी मोल ले लेती हैं।

अब क्या था, मालिनी को डाक्टर साहब की स्वीकृति भी मिल चुकी थी। दूसरे दिन सब्जी के दुकान पर रत्ना मिल ही गयी। रत्ना ने दूर से ही मालिनी को मैडम जी नमस्ते बोली तथा मालिनी भी कही नमस्ते। अब दोनों सब्जी लेकर साथ चल दिये, रास्ते में मालिनी कहा – रत्ना कल से मेरे घर आकर कुछ मेरा सहयोग कर देना और आज चलो मेरा रूम भी देख लेना। रत्ना को लगा जैसे कोई फरिश्ता मुझे मिल गया है तथा मन ही मन बहुत प्रसन्न हुई भगवान के प्रति कृतज्ञता के भाव साफ उसके आँखों में परिलक्षित हो रहे थे। रत्ना ने कहा मैडम जी इस मुसीबत के दिनों में आप लोग मेरे लिए ईश्वर से कम नहीं। मालिनी अपने कमरे पर आ गयी तथा सब्जी का थैला कीचेन में रखा और दो कप गरमा – गरम चाय बना लायी। रत्ना और मालिनी दोनों ने साथ चाय पीया तथा रत्ना कप धोकर किचेन मे रख आयी। मालिनी ने पूछा – महीने का क्या चार्ज लेती हैं आप। रत्ना बहन हमारा कोई चार्ज नहीं है कोई चालीस देता है तो कोई मेरी परेशानी देखकर पचास रुपया दे देता है खैर आपसे हम कुछ नहीं कहेंगे। नहीं – नहीं रत्ना हम आपको महीने का पूरे सौ रुपये देंगें।अब तो रत्ना के खुशी का ठिकाना न रहा जैसे उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह वहाँ से ईश्वर को धन्यवाद देती हुई रवाना हुई।

अब हमेशा रत्ना मालिनी के घर समय से आती और अपना काम – काज निपटा कर मैडम का सेवा सुश्रुवा भी कर देती। मालिनी के मन में रत्ना ने मानो जगह बना लिया था। मालिनी अपने पति से हर वक्त रत्ना की तारीफ करती। एक दिन रत्ना काम पर नहीं आयी तो रत्ना उसके घर गयी, देखा दरवाजे पर उसका बच्चा खेल रहा है। मालिनी ने बघ्चे से पूछा रत्ना कहाँ है तो बच्चे ने बताया वह बहुत बीमार है। मालिनी भीतर गयी तो रत्ना अपने फटे पुराने बिस्तर पर कराह रही है। मालिनी ने कहा – क्या बात है रत्ना तो उसने बताया कल से पेट मे बड़ा दर्द है मैडम जी, इसलिए काम पर नहीं आ सकी यह कहते हुए सिसकियाँ भरने लगी। मालिनी फौरन रिक्शा बुला लायी और उस बैठाकर हास्पिटल के लिए रवाना हो गयी। रत्ना ने कहा मैडम जी मेरे पास इतने पैसे नहीं की दवा करा सकूं। मालिनी ने कहा – तुम पैसों की चिंता मत करो, सब मुझ पर छोड़ दो। हास्पिटल में ले जाने के बाद मालिनी डाक्टर साहब से मिली कही कि रत्ना के पेट में भयंकर दर्द है कुछ दवा देखकर लिख दो। डाक्टर साहब ने कहा – मै पुरुषों का डाक्टर हूं खैर अभी औरतों की डाक्टर विजय लक्ष्मी को दिखा देता हूँ। डाक्टर साहब विजय लक्ष्मी के चैम्बर में रत्ना तथा मालिनी को लेकर प्रवेश किये। विजय लक्ष्मी ने अल्ट्रासाउंड के लिए लिखा, तुरंत अल्ट्रासाउंड हुआ जिसमें मालुम हुआ की रत्ना को बच्चेदानी का कैंसर है। विजय लक्ष्मी ने बताया कि बच्चेदानी तुरंत आपरेट करके निकालनी पड़ेगी। कुछ दवा इत्यादि लेकर वहाँ से सभी लोग चले आये।

रत्ना को उसके कमरे पर छोड़कर मालिनी तथा डाक्टर साहब घर पर चिंता में डूबे हुए आये। मालिनी ने कहा – आप कुछ करें कि रत्ना का जान जाने न पावे। डाक्टर साहब ने कहा – वह रेलवे हास्पिटल है जहाँ केवल रेलवे के आश्रितों का इलाज होता है। यदि यह आप्रेशन तुम्हारा होता तो एक पैसा भी नहीं लगता पर रत्ना का आप्रेशन वहाँ नहीं हो सकता। मालिनी ने कहा – आप उस गरीब के लिए कोई उपाय कर दें, जिससे उसकी जान बच जाय। डाक्टर साहब ने कहा – मालिनी कागज में उसके पति के जगह मेरा नाम लिख जाय तो उसका आप्रेशन फ्री में हो जायेगा। मालिनी ने कहा – जैसे भी हो उसे आप बचा लें। डाक्टर साहब ने भी हामी भर ही दी। अब क्या था एक दिन के लिए डाक्टर साहब कागज में रत्ना के पति बन गये, जिससे उसका आप्रेशन फ्री में हो गया। कुछ दिन बाद रत्ना स्वस्थ हो गयी। अब रत्ना फ्री में मालिनी के घर काम करने लगी। मालिनी रत्ना से इतना प्रभावित हुई कि उसे अपने कमरे में रहने के लिए बुला लिया। अब क्या था? रत्ना मालिनी का खाना – पीना, सोना – जगना सब एक साथ हो गया। कई वर्ष दोनों प्रेम पूर्वक एक ही साथ रहे।

एक दिन डाक्टर साहब की तबीयत बहुत खराब हो गयी, रत्ना और मालिनी जब तक हास्पिटल पहुंचते तब – तक डाक्टर साहब के प्राण पखेरू पयान कर चुके। अब दोनों रोते – बिलखते वापस घर आये और उनका अंतिम संस्कार घर से आकर भतीजों ने किया। काम – काज बड़े ही धूम – धाम से हुआ। रत्ना भी पूरे काम – काज में तन – मन से जुटी रही। सब काम समाप्त होने के बाद मालिनी ने पेंशन पाने के लिए हास्पिटल में प्रार्थना – पत्र दिया कि मेरे पति अब नहीं रहे उनकी पेंशन पर मेरा हक़ बनता है मुझे दिया जाय। उधर रत्ना भी हूबहू वही प्रार्थना – पत्र हास्पिटल में पेश किया और आप्रेशन के समय का प्रमाण – पत्र भी नत्थी कर दिया। अब क्या था पेंशन रत्ना को मिलने लगी। मालिनी के पास कोई सबूत था नहीं, इसलिए पेंशन की हकदार रत्ना हो गयी। मालिनी के सिर पर जैसे वज्रपात हो गया हो। मालिनी ने मन में सोंचा कि “आज उपकार मेरे लिए अपकार हो गया।।

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रचनाकार

Author

  • विनोद कुमार 'कवि रंग'

    नाम - विनोद कुमार उपनाम - कविरंग पिता - श्री वशिष्ठ माता - श्रीमती सावित्री जन्म तिथि - 15 /03 /1973 ग्राम - पर्रोई पो0-पेड़ारी बुजुर्ग जनपद - सिद्धार्थनगर (उ0 प्र0) लेखन - कविता, निबंध, कहानी प्रकाशित - समाचार पत्रों मे (यू0 एस0 ए0के हम हिंदुस्तानी, विजय दर्पण टाइम्स मेरठ, घूँघट की बगावत, गोरखपुर, हरियाणा टाइम्स हरियाणा तमाम पेपरों मे) Copyright@विनोद कुमार 'कवि रंग' / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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