आसमा पर इंद्रधनुषी नाव अब चलने लगी
खो ना जाए आसमां में सोचकर डरने लगी
बैगनी थे यात्री उस पर श्वेत खेवनहार था
चल रही थी जिस जगह ओ नीलाकाश था
अंत था ना छोर था ना किनारा था कोई
नयन उस पर ही गड़ाए देखता था हर कोई
पूरा गगन फैला हुआ था नीले बिछौने की तरह
लाल नीले श्वेत बादल चित्रकारी की तरह
मन मेरा तो जाकर डूबा भाव में ही उस जगह
खुशी मिली दिल को मेरे देखकरके वो जगह
डूब ना जाए ये नइया अब तो इस मझधार में
सोच कर ही मन ये डूबा करुण रस के भाव में
दिल से दिल के मिलन का मौसम अब छाने लगा
रह रह कर दिल को मेरे भी याद ओ आने लगा
सोचता हूं आसमां पर एक ठिकाना हो मेरा
चाल धोखा जो जमी पर उससे किनारा हो मेरा
डूब जाऊं मैं मनोहर प्रकृति के इस दृश्य में
रंग बिरंगी वादियों और बादलों के झुंड में
प्यार पांऊ मै प्रकृति का प्रकृति का दीदार हो
जो हृदय से उठे मेरे कविता का श्रृंगार हो
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