साथ कोई हो ये आरजू रही है हर एक की
मिल गए और न बने कमी रही विवेक की
इंतजार ने बढ़ाई है चाहतों की बढ़ती बेखुदी
उनके आने से ही मिटी है बेखुदी हर एक की
मानने को मानता है जायदाद सा हर अपने साथ को
मिल्कीयत चाहत की फिर भी न सम्हले हर एक की
अपनों में तो परायों का दीदार मिल ही जायेगा
मतलबी दुनिया से क्यूं मिट्टी मिली हर एक की
वो जिन्हें मिला सब कुछ लगता तो है दूर से
कमी कुछ तो सब में रखी रब ने हर एक की
कम ही मिलते हैं जिनने दर्द पर मरहम रखा
नसीहतें देते ज्यादा मिले कमी थी हर एक की
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