आत्महत्या कोई किस हालातों में करता है,
कोई उस इंसान के दर्द को उतनी गहराई से,
शायद हि समझ सकता।
कोई एक कारण नहीं होता, नहीं हो सकता,
उन सबकी अपनी वजह, अपनी मज़बूरीयां।
जब हर और से लोगों से प्रतारणा मिले,
जब कोई चरित्र को तार तार करे।
जब अपनो का साथ ना हो,
जब अपने हि दुश्मन बन बैठे।
जब नाकामी सर चढ़ कर तांडव करे,
जब हर और से रुस्वाई हाथ लगे।
जब आप अपना सौ प्रतिशत दो,
और आपके हाथ में शून्य के अतिरिक्त कुछ ना हो।
जब आप किसीको बेपनाह प्रेम करें,
और आपको अपमान, कपट अपने साथी से मिले।
जब हर जगह से, हर क्षेत्र से निराशा हाथ आए,
आखिर जीवन को कैसे जिया जाए?
ये सवाल उनलोगों के है,
जो इन पीड़ा से ऊपर उठ ना पाए।
क्या ये हत्या नहीं??
क्या दोष उन वजहों का नहीं??
कुछ चीजों पर हमारा बस नहीं,
पर जो हमारे है, वो फिर हमारे क्यों नहीं??
किसीको क्या अधिकार किसीके मान को ठेस पहुंचाएं,
प्रेम कर के छोड़ जाए?
अपने हि क्यों आखिर अपनत्व भूल जाते,
क्यों किसी स्वार्थ के बसिभूत हो जाते,
जो रिश्तों का हि कत्ल कर देना पड़े??
क्या इतने आत्महत्या होते? अगर कोई उक्साता नहीं।
आत्महत्या नहीं, षड़यंत्र है हत्या करने कि।
कभी कोई बोझ लाद कर, कभी मानसिक तनाव दे कर,
बेवजह यहाँ कुछ भी नहीं, बुरे लोगों कि ये कूटनीति सी।
थोड़े जो कमज़ोर हुए, ऐसे हि लोग निगल जाएंगे,
कुछ ना बचेगा जीवन मे, जीवन भी कहाँ बचा पाएंगे।
थोड़ी सी उम्मीदें भर लो जीवन में,
दुःख से लड़ने कि हिम्मत भी आ जाएगी।
कोई कुछ भी बिगाड़ ना पाएगा,
फिर समस्या नहीं, समाधान नज़र आएगा।
थोड़े से सजग, थोड़े निडर जो बन पाओगे,
आशा ज़िन्दगी जीने कि, कभी न धूमिल पाओगे।
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