आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है ।
बात खुशी की हो या गम की हर बात पर रोने लगी है ।।सूरज ढला चांद निकला तारे चमके
दिन की तो बात छोड़िए ये आंखें अब रातों में भी जगी है
पानी पिया शरबत पी चाय तक पी डाली।
ये कैसी प्यास है जो अभी तक लगी है ।।
तेरे अल्हड़ स्वभाव में नादानियां बहुत हैं ।
तुझे समझाने में मुझे एक मुद्दत लगी है ।।
वक्त है सावन का और हवा भी ठंडी चली है।
पता करो जंगल में यह बेवफाई की आग क्यों लगी है ।।तेरा मिजाज भी मेरी हरकतों से मिलने लगा है।
यह तेरी हंसी मेरी मुस्कुराहट से मिलने लगी है ।।
जिंदगी ने छीना मुझसे मेरा चैन मेरा सकुन मेरे सपने ।यहां तक कि मेरी सांसे भी ठगी है ।।
आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है ।
बात खुशी की हो या गम की हर बात पर रोने लगी है।।
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