आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है

आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है ।
बात खुशी की हो या गम की हर बात पर रोने लगी है ।।सूरज ढला चांद निकला तारे चमके
दिन की तो बात छोड़िए ये आंखें अब रातों में भी जगी है
पानी पिया शरबत पी चाय तक पी डाली।
ये कैसी प्यास है जो अभी तक लगी है ।।
तेरे अल्हड़ स्वभाव में नादानियां बहुत हैं ।
तुझे समझाने में मुझे एक मुद्दत लगी है ।।
वक्त है सावन का और हवा भी ठंडी चली है।
पता करो जंगल में यह बेवफाई की आग क्यों लगी है ।।तेरा मिजाज भी मेरी हरकतों से मिलने लगा है।
यह तेरी हंसी मेरी मुस्कुराहट से मिलने लगी है ।।
जिंदगी ने छीना मुझसे मेरा चैन मेरा सकुन मेरे सपने ।यहां तक कि मेरी सांसे भी ठगी है ।।
आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है ।
बात खुशी की हो या गम की हर बात पर रोने लगी है।।

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रचनाकार

Author

  • नरेंद्र शास्त्री

    पिता - श्री नरेश कुमार, पता-ग्राम धीरपुर, डाक खाना- खानपुर कोलिया , तहसील-थानेसर, जिला -कुरुक्षेत्र, pin-136131, राज्य-हरियाणा, जन्म तिथि 05,04,1986, शिक्षा - विशारद,शास्त्री M A ( हिंदी)M.ed, व्यवसाय-शिक्षक. प्रकाशन-2 कविताएं k b writer की मधुर बेला पुस्तक में, लेखन के क्षेत्र में सम्मान - राजभाषा सम्मान 2020, साहित्य सागर सम्मान 2022,Copyright@नरेंद्र शास्त्री / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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