सुत गौरी शिव शंकर शोभित रिद्धि सिद्धि साथ लिए
बढ़कर मात पिता है जग में कहकर चारों ओर फिरे
आज चतुर्थी जन्मदिवस की जो अनुपम बेला आई
निश दिन गणपति साथ रहे ये मन में भावना छाई
विघ्न विनाशक तुम्ही हो जग के प्रथम पूज्य गणपति तुम्ही हो
सकल चराचर में तुम ही छाए धारा भी तुम और गगन तुम्ही हो
तुझे ढूंढता कभी न भटकू दिलों में मेरे बसे जो तुम हो
तुम्ही हो नैया तुम्ही खेवइया जो पार कर दे वो तो तुम्ही हो
दिलों में आकर बसों हे गणपति दिलों का सबके भाव तुम्ही हो
शुरू जो होता है काम जग में सभी का श्री गणेश तूम्ही हो
सभी बीच में तुम्हें बुलाऊं लड्डू का मैं भोग लगाऊं
बंदन कर तेरे चरणों का निसिदिन ही में शीश झुकाऊ
मांगू मैं तुमको ही तुझसे और न कुछ तुझसे मैं मांगू
देने वाला जब मिल जाए फिर तो मैं जग से क्या मांगू
प्रीत दिलों में सदा बसाऊ भूल तुझे मैं कभी ना पाऊं
देखूं मैं जिस ओर उधर ही तुझको ही मैं हरदम पाऊं
तुमको हरदम दिल में बसाऊ कभी विदा ना मैं कर पाऊं
तेरे चरणों में ही गणपति जीवन अपना डूबा पाऊं