दुनिया को हाल ही नहीं हुलिया भी चाहिए।
जन्नत के साथ में हमें दुनिया भी चाहिए।
तन कर खड़ा रहा जो कहीं पर मिला नहीं,
अपनों के संग में हमें झुकना भी चाहिए।
दीवानगी हदों से गुजर जाए तो सदा,
दुनिया की आंखों से हमें बचना भी चाहिए।
माना कि आप बोलते हैं अच्छा ही मगर,
औरों को बोलते कभी सुनना भी चाहिए।
फूलों से आज तक किसे परहेज़ हो सका,
कांटों के बीच से हमें चलना भी चाहिए।
हर मर्ज की दवा हमें मिलती नहीं मगर,
बीमार होने से हमें बचना भी चाहिए।
सब ढूँढते रहे पर मैं भी मिला नहीं,
अच्छा तो चाहिए उन्हें सस्ता भी चाहिए।
अनजान भी मिले तो सहारे की सोचना,
तुझ सा ग़रीब को मसीहा भी चाहिए।
मुमकिन कहां थी आपकी अकेला से दोस्ती,
महलों से आप को तो निकलना भी चाहिए।
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