सितम यूं मुझपे ढा रहा है कोई।
नज़र झुका के जा रहा है कोई।।
बढ़ी धड़कन बता रही मुझको,
मेरे दिल में समा रहा है कोई।।
ज़ख्म देकर भी वो मायूश रहा,
उसके चेहरे पे हंसी आई है,
ख्वाब फिर से दिखा रहा है कोई।।
आईने का कसूर कुछ भी नही,
कई चेहरे दिखा रहा है कोई।।
कब्र पे इतनी रौशनी है ‘शेष’
दीया शायद जला रहा है कोई।।
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