पट खोले हैं माता मैं तेरे द्वार आई हूँ
धन धान्य के नहीं मैं शब्द हार लाई हूँ
अज्ञानी हूँ विमूढ़ हूँ माँ ज्ञान से भर दो
आसन यहीं लगा लो ये दरख्वास लाई हूँ….1
हैं द्वार पे नयन टिके उपकार ये कर दो
बागीश्वरी आ जाओ अंधकार को हर लो
अज्ञान के तिमिर को तुम प्रकाश से भर दो
विकृत विषाद भाव को संगीतमय कर दो…2
राग द्वेष के दुर्भाव को सद्भाव का वर दो
अपराध के कुचित्त को सतचित्त का वर दो
अखिल विश्व की धरा पे दिन मान हो
भारत मां भारती के शौर्य को श्रृंगार का सुर दो..(3)
जन-जन के उर में आज मानव धर्म को गढ़ दो
सुचित संकल्प ज्ञान को चिर विश्व में भर दो
मेरी लेखनी को धार दो तुम
राष्ट्र धर्म की बिटिया की कल्पना की माँ साकार तुम कर दो..4
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