हुआ जन्म था जेल में उनका नंद बबा ने पाला था
सो गए पहरेदार वहां के खुला गेट का ताला था
काली रात अंधेरी में तो जमुना भी विकराल हुई
बढ़कर उनके चरण छुई तब जाकरके ओ शांत हुई
ग्वाल बाल सन्ग कृष्ण कन्हैया गोकुल में ही खेले थे
वृंदावन में गोपी के संग जाकर रास रचाये थे
संग विराजे राधा के पर रुक्मणी को अपनाए थे
चीर हरण पर जाकरके द्रुपदा की लाज बचाए थे
दूध दही को घर-घर जाकर श्याम ने यहां चुराया था
रोक रोक कर गोपी को भी अपने संग नचाया था
नंद बाबा की गउओ को भी हरदम यहां चराते थे
बैठ कदम की डाल पे हरदम बंसी मधुर बजाते थे
जूझ रहा था गोकुल पूरा संकट उसपर छाया था
तब जाकर गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली उठाया था
पूरा गांव इकट्ठा हो जब बैठा उसकी छाया में
तब जाकर खुशहाली छाई गोकुल के जनमानस में
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