शरद पूर्णिमा

आज पूर्णिमा के अवसर पर गंगा के स्नान से
पावन ये जीवन हो जाए तन मन भीगे भाव से
गंगा की लहरें जब उठती मन में हिलोरें मार के
रग रग में खुशियां भर जाती गंगा अमृत धार से
गोमुख से निकली है गंगा भागीरथी प्रयास से
जड़ी बूटियां साथ ले आई छटा हिमालय पास से
संजीवनी पिलाकर हरती कष्ट सभी संसार के
पाप सभी का हर लेती है मोच्छ दायिनी नाम से
चरण पखारे थे केवट ने भरके कटौती राम के
सबका जीवन अमृत हो गया गंगाजल के पान से
गंगा यमुना सरस्वती का मिलन जहां पर आज है
तीनों नदियों का संगम ही पावन प्रयाग का धाम है
स्वर्ग से लेकर धरती उतरी अमित निशानी प्यार की
देश प्रेम मे भर दी जिसने अमित निशानी प्यार की
करता वजू यहां पर कोई नहलाएं भगवान को
सारे जगत को पावन कर दे कर दे हर इंसान को
हरिद्वार काशी में आई वह तो शिवालिक धाम से
देवभूमि से मिली ओ जाकर गंगासागर धाम से
क्यों दूषित करता है इसको कुछ भान नहीं इंसान को
स्वच्छ धवल नित कलकल बहती गंगा जल की धार को

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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