वक़्त की टहनी पे अब भी खिल रहा हूँ मैं ।
राह तेरे लौटने की देखता हूँ मैं ।
बिन तेरे कैसे जिऊँगा सोचता हूँ मैं ।
वक़्त के उस पार भी कुछ देखता हूँ मैं ।
आपकी नज़दीकियों की खुशबुएँ ले कर ।
दूर पत्थर के किले में लौटता हूँ मैं ।
ऐ मेरी तन्हाइयो ग़म ना करो मैं हूँ ।
फिर तुम्हे बाँहों में लेने आ रहा हूँ मैं ।
हाँ मैं सूरज तो नहीं हूँ आपका लेकिन ।
दीप की मानिन्द राहों में रखा हूँ मैं ।
मैं समंदर हूँ किसी दिन बारिशें दूँगा ।
ऐ मेरी धरती कि तुझको चाहता हूँ मैं ।
ले के उट्ठा हूँ दुआओं के रसीले फल ।
जब भी क़दमों में बुज़ुर्गों के झुका हूँ मैं ।
इब्तदा से इन्तहा तक बस मुहब्बत हूँ ।
तुम ख़ुदा तक जा सको वो रास्ता हूँ मैं ।
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