प्रेम में ही तृप्ति है

घिर के सावन में बदरिया प्रेम जल बरसा रही
भीग जाए सबका तन मन भाव ये दर्शा रही
जब चमकती है ये बिजली गर्जना नभ हो रही
प्रकृति के संग में रहो संदेश हमको दे रही
डाल पर झूले पड़े चहुओर गुंजन गीत की
फैली हरियाली जगत में धरती नभ के प्रीति की
प्रेम में तपता गगन और प्रेम में तपती धरा है
प्रेम बनकरके ये आंसू आसमां से जब झरा है
क्या पता क्यों दिल धड़कता है मेरा किस प्रीत में
लालसा किसकी जगी है दिल में मेरे प्रीति की
प्रीति जो दिल से निभाए प्रीति उससे तुम करो
हार जाने की खुशी हो लालसा ना जीत की
भाव में ही डूब जाएं ऐसी उनकी प्रीति हो
प्रेम भर जाए दिलों में ये जगत की रीति हो
प्रेम पाकर आसमा का तृप्त ये धरती हुई
प्रेम में ही तृप्ति है संदेश हमको दे रही

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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