दीये से जलते हैं खुद औरों को राह दिखाई है,
तब जाकर कहीं हमने गुरु की उपाधि पाई है।
सही गलत बच्चों को समझाया है,
हमने हमेशा एक नया समाज बनाया है।
शिक्षा की हर नदी हम जैसे समुद्र में समाई है,
तब जाकर कहीं हमने गुरु की उपाधि पाई है।।
तख्ती पर अ, आ लिखना सिखाया,
उंगलियों पर गिनती को गिनवाया।
हमने स्कूल में हररोज प्रार्थना करवाई है,
तब जाकर कहीं हमने गुरु की उपाधि पाई है।।
पहले मनाए स्कूल में फिर त्योहार घर पर मनाए हैं,
हमीं ने बच्चे कोई डाक्टर कोई शिक्षक बनाए हैं।
ये जो चमकते हैं चांद से बच्चे ये हमारी कमाई है,
तब जाकर कहीं हमने गुरु की उपाधि पाई है।।
जय जवान, जय किसान के नारे लगवाए हैं,
जहां के सारे गुण अवगुण बच्ची को बताए हैं।
शिक्षा हमारी धुंधली आंख में सुरमे की सिलाई है,
तब जाकर कहीं हमने गुरु की उपाधि पाई है।।
दीये से जलते हैं खुद औरों को राह दिखाई है,
तब जाकर कहीं हमने गुरु की उपाधि पाई है।।
रचनाकार
Author
पिता - श्री नरेश कुमार, पता-ग्राम धीरपुर, डाक खाना- खानपुर कोलिया , तहसील-थानेसर, जिला -कुरुक्षेत्र, pin-136131, राज्य-हरियाणा, जन्म तिथि 05,04,1986, शिक्षा - विशारद,शास्त्री M A ( हिंदी)M.ed, व्यवसाय-शिक्षक. प्रकाशन-2 कविताएं k b writer की मधुर बेला पुस्तक में, लेखन के क्षेत्र में सम्मान - राजभाषा सम्मान 2020, साहित्य सागर सम्मान 2022,Copyright@नरेंद्र शास्त्री / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |