तलाश अपने अस्तित्त्व की

तलाश अपने अस्तित्त्व की

मनुष्य के जीवन की सबसे गहरी और मौलिक जिज्ञासा होती है—”मैं कौन हूँ?” यह प्रश्न जितना सरल प्रतीत होता है, इसका उत्तर उतना ही जटिल और गूढ़ है। जब कोई मनुष्य अपने चारों ओर की भीड़, संबंधों, सामाजिक भूमिकाओं और दैनिक गतिविधियों से बाहर निकलकर थोड़ी देर के लिए ठहरता है, तो उसके भीतर से यही स्वर उठता है कि वह स्वयं क्या है? क्या वह केवल एक नाम है, एक शरीर है, एक पद या संबंधों की परिभाषा है? या फिर इन सबसे परे भी उसका कोई अर्थ है, कोई ऐसी पहचान जो स्थायी है, अमिट है, और जो समय, समाज या परिस्थितियों के बदलने से बदलती नहीं?

अस्तित्त्व की तलाश दरअसल आत्मा की पुकार है, जो बाहरी शोरगुल से ऊपर उठकर भीतर के मौन में उतरने की प्रक्रिया है। हम जन्म लेते हैं, रिश्तों में बंधते हैं, शिक्षा ग्रहण करते हैं, नौकरी या व्यवसाय में लगते हैं, परिवार बनाते हैं, समाज की भूमिकाएं निभाते हैं, और फिर एक दिन मृत्यु का वरण कर लेते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में हम बहुत कुछ करते हैं, बहुत कुछ बनते हैं, पर क्या कभी हम सचमुच खुद को पहचान पाते हैं? क्या हमने कभी यह जाना कि जो कुछ हम कर रहे हैं, वह सच में हमारी आत्मा की मांग है या केवल सामाजिक अपेक्षाओं की पूर्ति?

कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति जीवन की सारी भौतिक सफलताएं प्राप्त कर लेता है—धन, मान, प्रतिष्ठा, परिवार—पर भीतर से एक खालीपन उसे घेर लेता है। वह मुस्कुराता है, पर उसकी आत्मा मौन होती है। वह लोगों से घिरा होता है, पर अंदर गहराई से अकेलापन महसूस करता है। यह वही क्षण होता है जब अस्तित्त्व की तलाश आरंभ होती है। यह वह अवस्था है जब आत्मा यह कहती है कि तुमने सब कुछ किया, पर खुद को नहीं जाना।

यह तलाश कोई एक दिन की प्रक्रिया नहीं होती। यह न तो किसी किताब से पूरी होती है, न किसी गुरु के उपदेश से। यह यात्रा है—अनवरत, निरंतर, और अंतरमुखी। इसमें व्यक्ति को अपने भीतर उतरना पड़ता है, अपने विचारों, भावनाओं, इच्छाओं, और भय का सामना करना पड़ता है। उसे यह देखना पड़ता है कि वह जो बन गया है, वह क्या सच में उसका अपना निर्माण है या दूसरों की अपेक्षाओं का परिणाम? उसे उन मुखौटों को उतारना पड़ता है जिन्हें वह वर्षों से पहने हुए है, और उस मूल स्वरूप से मिलना होता है जो सच्चा है, शाश्वत है, और अपराजेय है।

अस्तित्त्व की तलाश का अर्थ केवल आत्म-चिंतन नहीं है। यह एक साहसिक कार्य है जिसमें व्यक्ति को अपने आराम के क्षेत्र से बाहर आना पड़ता है। उसे प्रश्न पूछने पड़ते हैं—न केवल दूसरों से, बल्कि सबसे अधिक अपने आप से। उसे उन सभी मान्यताओं को चुनौती देनी होती है जो उसने बिना सोचे-समझे स्वीकार कर ली थीं। यह प्रक्रिया कभी-कभी पीड़ादायक भी हो सकती है क्योंकि हम जो जानते हैं, उससे बाहर निकलना कठिन होता है। पर यही वह मार्ग है जो हमें हमारे असली स्वरूप की ओर ले जाता है।

अस्तित्त्व की तलाश में व्यक्ति को अक्सर एकांत प्रिय हो जाता है। वह भीड़ से दूर जाने लगता है, न केवल भौतिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी। उसे शब्दों से अधिक मौन आकर्षित करता है, और दिखावे से अधिक गहराई। वह अब बाहरी सफलता से उतना प्रभावित नहीं होता जितना भीतर की शांति से। उसका उद्देश्य अब केवल जीवित रहना नहीं होता, बल्कि जाग्रत होकर जीना होता है। वह केवल समय काटने के लिए नहीं जीता, बल्कि हर क्षण को पूर्णता से जीने का प्रयास करता है।

यह तलाश व्यक्ति को उसके अहंकार से मुक्त करती है। जब वह समझता है कि उसकी असली पहचान उसके नाम, पद, रूप, जाति, धर्म या देश से परे है, तब वह सबके प्रति एक समता की दृष्टि विकसित करता है। वह जान जाता है कि हर व्यक्ति अपने-अपने रूप में उसी ब्रह्म का अंश है, जो स्वयं में अखंड है, और इस सृष्टि का मूल है। अस्तित्त्व की इस अनुभूति के बाद व्यक्ति में करुणा, सहानुभूति, और प्रेम का उदय होता है। वह अब दूसरों को अलग नहीं मानता, बल्कि एक ही चेतना के विभिन्न रूप मानकर देखता है।

यह भी सत्य है कि अस्तित्त्व की खोज करने वाला व्यक्ति कभी-कभी संसार से विमुख दिखाई देता है। वह भौतिकता से ऊपर उठता है, जिससे लोगों को लगता है कि वह उदास या अकेला है। पर वास्तव में वह अपनी भीतरी दुनिया में इतना रम जाता है कि बाहरी चकाचौंध उसे आकर्षित नहीं करती। उसका उद्देश्य अब केवल सफलता नहीं, सार्थकता होती है। वह हर कार्य में एक गहराई चाहता है, हर संबंध में एक प्रामाणिकता, और हर विचार में एक सच्चाई।

इस खोज में व्यक्ति को कभी-कभी मार्गदर्शन की भी आवश्यकता होती है। कभी कोई गुरु, कोई आत्मीय मित्र, कोई पुस्तक या कोई अनुभव उसे राह दिखाता है। पर अंततः यात्रा उसे स्वयं ही तय करनी होती है। यह वह मार्ग है जिसमें प्रत्येक मोड़ पर उसे स्वयं के साथ साक्षात्कार होता है। वह अपने डर, क्रोध, मोह, वासना, लोभ आदि को पहचानता है और उन्हें पार करके आगे बढ़ता है।

अस्तित्त्व की तलाश अंततः व्यक्ति को आत्मा के उस केंद्र तक ले जाती है जहाँ शांति है, मौन है, और अमरता का अनुभव है। वहाँ न कोई द्वंद्व होता है, न कोई भय। वहाँ केवल एकता की अनुभूति होती है—स्वयं से, परमात्मा से, और सम्पूर्ण सृष्टि से। यह वह अवस्था है जहाँ व्यक्ति को न कोई ख्याति चाहिए, न कोई सिद्धि। उसे केवल अपने होने की पूर्णता चाहिए—एक ऐसी अनुभूति जो शब्दातीत है, और फिर भी सबसे अधिक वास्तविक।

अस्तित्त्व की यह खोज जितनी व्यक्ति को भीतर ले जाती है, उतनी ही उसे बाहर की दुनिया में भी नया दृष्टिकोण देती है। वह अब जीवन को एक उत्सव के रूप में देखता है, जिसमें हर क्षण एक अवसर है—जानने का, अनुभव करने का, और जागने का। वह अब जीवन से लड़ता नहीं, उससे संवाद करता है। वह अब भाग्य को कोसता नहीं, स्वयं को समझने का प्रयास करता है।

इस यात्रा का अंत नहीं होता, क्योंकि आत्मा की गहराइयाँ अनंत हैं। हर स्तर पर एक नई परत खुलती है, एक नया अनुभव सामने आता है, और एक नया अर्थ जीवन को मिलता है। यही जीवन की सबसे सुंदर बात है—कि इसकी गहराइयाँ कभी समाप्त नहीं होतीं, और खोज करने वाला हर दिन एक नया सत्य खोज सकता है। अस्तित्त्व की तलाश एक ऐसी यात्रा है जिसमें मंज़िल खुद यात्री के भीतर ही बसती है।

 

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • Dr. Rishika Verma

    Dr. Rishika Verma is working as Assistant Professor, Department of Philosophy, School of Humanities and Social Sciences in Hemavati Nandan Bahuguna Garhwal University, Srinagar (Garhwal) Uttarakhand, A Central University. She Completed her higher education, B.A., M.A., Ph.D. and Post-Doctoral Fellowship from Banaras Hindu University, Varanasi. Her 30 Research papers are published in National and international, UGC CARE and UGC listed journals. She presented 34 papers in national and international seminars and conferences. She has wirtten 3 books till now. she got many Awards and Samman like International Educationist Award, Best Young Woman Faculty Award, National YogaRatna Award, Sahitya Gaurav Samman, Hindi Utkrisht Sahitya Seva Samman, Woman Icone Award.

Total View
error: Content is protected !!