डाल में बैठी चार गौरैया
मंथन करती विषय अनेक
कहां जाएं राहें तकें अनेक
कहीं और है उनको जाना
सारा जग है जाना पहचाना
मंथन उनको भ्रमित कर रहा
मन उनको संकेत कर रहा
कहां मिलेगा इन्हें दाना पानी
सोच विचार करें चारों जनी
सोचती
कौन करेगा मेहरबानी
कितना कठिन समय है
हैरानी
महंगाई ने भी बहुत सताया
यही सोचती बैठी चारों गौरैया
अब कठिन समय है आया
बैशाख की धूप हमें सताया
जीवन एक कठिन कहानी
बच्चों का दाना पानी देना है
उनकी बहबूदी भी करना है
समय नहीं है जाना पहचाना
अपना परिवार को है चलाना
परिवारका जीवन बचाना है
जीवन आसान नहीं बचाना है
यही मंत्रणां बैठ करती
गौरैया
चारों मंथन कर सोचती
गौरैया
कहीं बहेलिया जाल में फंसा कर
उनके जीवन को बंधक बनाकर
दुख भी देगा पिंजरे में
रखकर
अनजानी बीथियां न
सुखकर
अजनबी होंगे सारे
जनमानस
बीते दिनों का मंथन करे
मानस
वैशाख मास की तपन है
घनेरी
तपता जीवन दुखी दुनिया
सारी
दाना पानी मिलना कठिन
हो गया
जीवन जीना भी कठिन
हो गया
दानापानी ढूंढते ढूंढते थक
आकर भैया
हरित डाल पे बैठ मंथन करें
चारों गौरैया