जल के बिना जीवन संभव नहीं, जल है तो जीवन है।
रामचरितमानस- किष्किन्धाकाण्ड में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा ।
पंच रचित् अधि अधम शरीरा।।
अर्थात पृथ्वी जल वायु अग्नि और आकाश से यह हमारा शरीर निर्मित है। इस पंक्ति से अन्य तत्वों के साथ जल को भी उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण बताया गया है, लेकिन आज हमारे सामने जल संकट विकराल रूप धारण कर रहा है जिसे संरक्षण और संवर्धन की जरूरत है। हमें जल के दुरुपयोग व अपव्यय पर रोक लगानी होगी। यदि हम धरती को बचाना और पर्यावरण को संतुलित रखना चाहते हैं, तो हमें बिना देर किए जल को बचाने के हर संभव प्रयास करने होंगे। लोगों को समझना होगा कि यदि जल नहीं होगा, तो हमारा जीवन भी नहीं बचेगा, क्योंकि जल है तो कल है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां की तक़रीबन आधी जनसँख्या अपने जीवन यापन के लिए कृषि पर निर्भर है, और कृषि पूर्णतया जल पर, जिस प्रकार भारत जल के संकट से जूझ रहा है वो दिन दूर नहीं जब हम आने वाले भविष्य की कल्पना भी नहीं कर पाएंगे। हम आज अपने मौलिक अधिकारों की बात तो करते है, पर क्या हमे अपने कर्त्वयों का बोध है ? महात्मा गाँधी ने कहा है कि अधिकार एवं कर्त्तव्य दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं यदि हम अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं तो हमे अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में पीछे नहीं हटना चाहिए इसी सम्बन्ध में मुझे एक पुरानी किदवंती याद आ रही है एक कौआ प्यासा था घड़े में थोड़ा पानी था इस किदवंती में कौवा ने जिस प्रकार दो घूंट पानी के लिए संघर्ष किया था आज हमे भी उसी परिश्रम की आवश्यक्ता है अपनी अमूल्य धरोहर जल को बचाने के लिए।भारत में बहुत से ऐसे राज्य हैं जहाँ गर्मी के मौसम में जल संकट हो जाता है और वहां के लोगो को जल खरीदना पड़ता है कैसी विडम्वना है जल जो प्रकृति द्वारा हमे निशुल्क प्रदत है आज हमे उसे खरीदना पड़ रहा है इस विषय पे गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
हम ये तो जानते है की जल ही जीवन है पर क्या हम ये मानते है ? क्या हमने कभी स्वयं से ये प्रश्न किया है कि हमारे जीवन में जल क्या महत्त्व है? एक पुरानी कहावत है की बून्द बून्द से सागर भरता है यदि बून्द बून्द से सागर भरता है तो वो ख़तम भी हो सकता है। कहते हैं शिशु की प्रारंभिक पाठशाला घर से शुरू होती है। हमे सर्वप्रथम स्वयं को एवं अपने परिवार को शिक्षित करना होगा और उन्हें बताना होगा की जल की बर्बादी को कैसे रोका जाये हम अपने घरो में नहाने के लिए झरनो के स्थान पे बाल्टी का प्रयोग, ब्रश करते समय नल को बंद रखने के इत्यादि तरीको से पानी को बर्बाद होने से बचा सकते हैं आजकल शहरी इलाको में शुद्ध पानी के लिए लोग अपने घरो में वाटर पूरिफिएर का प्रयोग करते है। वाटर पूरिफिएर से निकला अशुद्ध पानी एक पाइप के रास्ते नाली में गिरता है यदि हम उस पानी को किसी पात्र में इक्कठा कर लो तो उसका उपयोग हम स्नान करने एवं ब्रश करने में कर सकते हैं इन छोटे छोटे प्रयोगो से हम जल बर्बाद होने से बचा सकते हैं। 22 मार्च को मनाया जाने वाला “विश्व जल दिवस” जिसका मुख्य उद्देश्य पानी का संरक्षण करना है यह महज एक दिवस के रूप में नही मनाया जाना चाहिए बल्कि इसका उद्देश्य होना चाहिए कि यह अपने लक्ष्य यानि की ज्यादा से ज्यादा जल संरक्षण कर सकें।
यदि पानी का अँधाधुंध प्रयोग इसी तरह चलता रहा और हमने जल सरंक्षण का कोई समाधान नहीं ढूँढा तो वो दिन दूर नहीं जब हम पानी की एक बूंद बूंद के लिए तरसेंगे। इसीलिए यदि हालात इसी प्रकार चलते रहे तो तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा पानी के अभाव से अकाल मृत्यु, जानवरों की सामूहिक मौतें और संस्कृति के लोप हो जाने की स्थिति पैदा हो जाएगी।
एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने कहा है की आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है, यदि हम ये मानते है की जल है तो कल है, हमे अविष्कार करने होंगे अविष्कार से मेरा तात्पर्य यहाँ वैज्ञानिक अविष्कार नहीं अपितु वैचारिक अविष्कार जिससे हम जल ही जीवन के महत्त्व को स्वीकारते हुए जल के संवर्धन को अपना परम कर्त्तव्य मानते हुए समाज को शिक्षित करे एवं अपनी वर्त्तमान और आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन दे सके।