जो देखा एक गुलाब तो दिल ये मचल गया
कांटा नहीं था फिर भी वो सीने मे चुभ गया
कहते हैं लोग पंखुड़ी कोमल गुलाब की
पर छुआ उसको जैसे ही खंजर सा चुभ गया
खुश्बू ने उसकी दिल में घोली मिश्री इस तरह
इतनी मिली मिठास की ओ शुगर दे गया
कितनी थी मीठी खुशबू उसकी क्या बताऊं मैं
निगाहों से उसने दिल में मेरे नशा भर गया
उसके लिए ही मैंने सजाई थी महफिले
वह दिल का हार बनके मुझको फिर हरा गया
मै सूर्य जैसा वह तो चंद्र के समान थी
पर कल्पना में सूर्य को पसीना आ गया
पा जाऊं उसको मैं निशाना साधता रहा
वो उलट करके मुझको निशाना बना गया
सपने सुनहरे आंख में सजते ही रह गए
वो गैर को ही अपना ठिकाना बना गया
करती रही भ्रमण वो दिल के बगीचे में
पर उसकी खुशबू को तो कोई और ले गया
खुशबू जो उसके रूप की पहले दिनों की थी
जीवन में भूल पाऊं ना ओ एहसास दे गया
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