पात्र:
- सूरज – मझला बेटा, भावुक और जिम्मेदार।
- पिता (बाबूजी) – बूढ़े हो चुके, परिवार के लिए चिंतित।
- मां – दुबली, पर अपने बच्चों से बहुत स्नेह करती हैं।
- बड़ा भाई (अजय) – परिवार की जिम्मेदारियों से दूर।
- छोटा भाई (विजय) – निश्चिंत, अपने काम में व्यस्त।
- बड़ी बहन (सरिता) – जिसकी शादी हो चुकी है।
- दूसरी बहन (प्रिया) – जिसकी शादी होनी बाकी है।
- छोटी बहन (सुजाता) – अभी पढ़ाई कर रही है।
- रमेश – सूरज का दोस्त, जो उसे जीवन में दिशा दिखाता है।
प्रथम दृश्य: घर का आँगन
(मां चूल्हे के पास बैठी है, सूरज पास में बैठा है।)
मां (थकी आवाज़ में): बेटा, प्रिया की शादी की चिंता दिन-रात खाए जा रही है। तुम्हारे बाबूजी की हालत भी ठीक नहीं रहती।
सूरज (सोचते हुए): हां मां, प्रिया की शादी अब जरूरी हो गई है, लेकिन पैसे का इंतजाम कैसे होगा? अजय भैया को तो इन बातों से कोई मतलब ही नहीं है।
(बाबूजी घर के कोने में बैठकर cough करते हैं।)
बाबूजी (धीमी आवाज़ में): अब समय आ गया है कि इस परिवार की जिम्मेदारी उठाने का समय है, पर मेरे पास अब उतनी ताकत नहीं रही।
सूरज (मन में): ये सब देख कर लगता है कि सारी जिम्मेदारी अब मुझे ही उठानी होगी।
द्वितीय दृश्य: बड़े भाई का बेपरवाह रवैया
(अजय अपने कमरे में मोबाइल चला रहा है, सूरज आता है।)
सूरज: भैया, प्रिया की शादी के बारे में कुछ सोचा है?
अजय (लापरवाही से): अरे यार, तुम क्यों इतनी चिंता करते हो? हो जाएगी शादी, अभी बहुत वक्त है।
सूरज: वक्त कहां है भैया? मां-बाबूजी की हालत देखी है आपने?
अजय: तुम ही क्यों टेंशन ले रहे हो? मेरा काम और अपनी लाइफ बहुत है संभालने के लिए।
(सूरज मन ही मन गुस्से में भर जाता है।)
तृतीय दृश्य: सूरज और उसका दोस्त रमेश
(सूरज उदास मन से सड़क पर चल रहा है। रमेश, उसका पुराना दोस्त, उससे मिलता है।)
रमेश: क्या हुआ सूरज? इतना परेशान क्यों दिख रहे हो?
सूरज: घर की सारी जिम्मेदारी मेरे सिर पर आ गई है, बड़े और छोटे दोनों भाई को कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रिया की शादी की चिंता सता रही है।
रमेश: देख, सब कुछ अकेले नहीं होता। तुझे पहले अपना भविष्य संवारना होगा, तभी तू परिवार को संभाल सकेगा। कोई छोटी नौकरी या काम पकड़, ताकि प्रिया की शादी के लिए थोड़ा-बहुत इंतजाम हो सके।
सूरज: तुम ठीक कह रहे हो। मुझे अपने लिए भी कुछ करना होगा।
चतुर्थ दृश्य: परिवार के साथ निर्णय
(सूरज घर आता है, मां और बाबूजी दोनों बैठे होते हैं।)
सूरज (निश्चय के साथ): मां, बाबूजी, मैंने तय कर लिया है। मैं नौकरी करूंगा। कुछ पैसों का इंतजाम हो जाएगा, तो हम प्रिया की शादी करवा देंगे।
बाबूजी (आश्वस्त होकर): बेटा, तूने बहुत बड़ा कदम उठाया है। मुझे तुझ पर गर्व है।
मां (आंसू भरते हुए): भगवान तेरा भला करे, बेटा।
समापन दृश्य: प्रिया की शादी
(प्रिया की शादी की तैयारी हो रही है, सूरज अब अपने पैरों पर खड़ा है। अजय और विजय को भी अब अपनी गलती का एहसास होता है।)
अजय: सूरज, तुमने जो किया, वो मैं नहीं कर पाया। मुझसे बड़ी भूल हो गई।
विजय: हां भाई, हमें परिवार के लिए और सोचना चाहिए था।
सूरज (मुस्कुराते हुए): अब सब कुछ ठीक हो रहा है। परिवार मिलकर चले तो हर मुश्किल आसान हो जाती है।
(शादी की खुशियां मनाई जाती हैं। सभी पात्र एक साथ आते हैं, और पर्दा गिरता है।)
यह नाटक परिवार, जिम्मेदारी और भाईचारे के महत्व को उजागर करता है। नाटक का उद्देश्य दर्शकों को यह सिखाना है कि जब परिवार एकजुट होकर किसी समस्या का सामना करता है, तो हर कठिनाई दूर हो जाती है।