सबसे शीतल सबसे पावन,
गंगा मां है धार तुम्हारी,
तेरे चरणों का मैं सेवक,
कोई भागीरथी कहता है,
कोई सुर सरिता बताता है ।
सब कष्ट पाप मिट जाते है,
जो भी कोई डुबकी लगाता है ।।
सगर पुत्र जब भस्म हुए,
उनको भी मोक्ष दिलाना था ।
भागीरथ ने करी घोर तपस्या,
उन्हें गंगा पृथ्वी पर लाना था ।।
नारायण पद से निकली गंगा,
शिव की जटा समाई थी ।
शिव की जटा से निकल के,
तब मां पृथ्वी पर आई थी ।।
गंगोत्री धाम से निकल कर,
ये पावन हरिद्वार को आई है ।
फिर हरिद्वार से प्रयाग पहुंची,
तब जाकर संगम कहलाई है ।।
संगम से फिर काशी पहुंची,
शिव शंकर के मन को भायी है ।
शिव शंकर का अभिषेक कर,
शिव शंकर के गुण गाई है ।।
अमृत की बूंदें इसमें समाई,
ये हमको वेदों ने बात बताई है ।
कुंभ का आयोजन होता है,
सबके मन में श्रद्धा समाई है ।।
आचमन करे जो इस जल का,
वो मुक्ति को पा जाता है ।
इसलिए मोक्ष धाम भी तो ,
गंगा का तट कहलाता है ।।