क्या से क्या हो गया

देखो ना क्या से क्या हो गया

दोनों का अलग रास्ता हो गया

सादगी को छोड़ दिया लोगों ने

आधुनिक यहां हर जवां हो गया

लहरों संग आसमां छूने की ख्वाहिश थी

समंदर औऱ नदियों का टूटा नाता हो गया

छू रहा आसमान को वो धीरे- धीरे

अब उसका हारना, जितना हो गया

चल रहे सब अपने-अपने रास्ते

लापता मेरा बागबां हो गया

बिखरे हुए को हरदम समेटती रही मैं

जिसमें कीमती वक़्त ना जाने कहां खो गया

खैरियत सुनाती चिट्ठियां अब खो गई

फलक पर उनका आशियां हो गया

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रचनाकार

Author

  • प्रियंका सिंह

    जयपुर, राजस्थान, व्यवसाय-वकालत.Copyright@प्रियंका सिंह/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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