अभी तो उसके इतराने के दिन हैं।
किसी के ख़्वाब में आने के दिन हैं।
मुहब्बत की कसौटी से हमारे,
गुज़र कर बस ख़रे आने के दिन हैं।
ये मौसम है बहारों का सुनो तुम,
यही दिन तो करीब आने के दिन हैं।
हक़ीक़त ये उसे शाय़द नहीं मालूम,
यही अश्कों को पी जाने के दिन हैं।
गया सच का ज़माना तो कभी का,
अरे ये झूठ फैलाने के दिन हैं।
ग़ज़ल पढ़ के मेरी उनको लगा यूँ,
यही तो आग सुलगाने के दिन हैं।
मुसाफिर हूंँ चला जाऊंगा इक दिन,
अभी तो दिल को बहलाने के दिन हैं।
कहा है आज़ मुझसे ही किसी ने,
दुआ में हाथ फैलाने के दिन हैं।
‘अकेला’ ही रहोगे कब तलक तुम,
किसी का साथ अब पाने के दिन हैं।
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