(पहले )
जख्म से जख्म दिल के मिटे जा रहे थे
एक छूटे तो दूजे मिले जा रहे थे
वो पुराना था अब तो नया मिल गया
सोचकर दर्द दिल का सहे जा रहे थे
इक दिशा ही नहीं हर दिशाओं से ही
नित नए फूल खिलते चले जा रहे थे
जिनको चुनता था अपने गले के लिए
जीत के हार बनते चले जा रहे थे
(अब )
मेरे दिल को तो ऐसे सिला देगी वो
सोच कर के ही दिल अब फटे जा रहे हैं
भागता दूर जितना मैं उनसे कभी
जख्म उतने ही मिलते चले जा रहे हैं
जख्म ही अब तो दिल में अकेला बचा
सोचकर दिल उसी से लगा जा रहे हैं
मगर दिल को दुख मेरे इस बात का
जख्म मुझको अकेले जो तड़पा रहे हैं
देखे जाने की संख्या : 325