प्रेम पास में बंधे हुए हैं
प्रेम पास में बंधे हुए हैं न जाने कितने युगों से हम तुम मिले हैं लाखों ही हर जनम में सगे मगर हैं यहां पे
प्रेम पास में बंधे हुए हैं न जाने कितने युगों से हम तुम मिले हैं लाखों ही हर जनम में सगे मगर हैं यहां पे
क्यों शर्मिंदा करते हो रोज़ हाल पूंछ कर,हाल वही है जो तुमने मेरा बना रखा है।। लिखना चाहता हूँ मैं भी कुछ गहरा सा, जिसे
लाल गुलाबी रंग है, झूम रहा संसार सूरज की किरण खुशियों की बहार चाँद की चांदनी अपनों का त्योहार शुभ हो आप सबको ये रंगों
इबादत रब की और सूरत यार की हो सजदा रब का और रस्म प्यार की हो आशिक़ों के मज़हब का क्या कहना ज़िक्र रब का
दिलकी बातों से, दिल ये निकलता नहीं। ज़ाम पीकर भी, अब ये मचलता नहीं।। चंद पल की खुशी, दी थी उसने मुझे। फिर जख्म़ ऐसे
इन आँखों को रुलाने का मज़ा कुछ और होता है, ख़ुदा से ख़ौफ़ खाने का मज़ा कुछ और होता है। हमारी ये ग़लत फ़हमी रुलाती
इन मुन्सिफ़ों की जेब में कितनी मलाई है, हैं दफ़्न सारे राज़ अदालत की गोद में। अब फ़ैसला कहाँ से मेरे हक़ में आएगा, इन्साफ़
ये परिंदे सफर में हैं उड़ रहे ऊँची उड़ान इनमें कौन हिन्दु है बताओ कौन है रहमान बहे बयार प्रेम का न हो मिट्टी लहुलुहान
रहमत का असर है सवर जाता हुँ मै याद कर के देख लो नजर आता हुँ मै माँ के दुवाओ का ही असर है दोस्तो
जिस्मों के भीड़ में अब रिश्तों की बात हो, हैवानियत से मिलचुके अब फरिश्तों की बात हो। मुहब्बते सरजमीं से कर लाखों ही मर-मिटे, अब