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मेरा हौसला था
गिराने वालों ने कब तरस खाया, ये मेरा हौसला था,सम्हालता रहा ।। हर कदम पर बाधाएं मिली मुझको, फिर मंजिल की तरफ बढ़ता रहा ।।
गिराने वालों ने कब तरस खाया, ये मेरा हौसला था,सम्हालता रहा ।। हर कदम पर बाधाएं मिली मुझको, फिर मंजिल की तरफ बढ़ता रहा ।।
दिल ने तुम्हें पुकारा है सरकारे-दो जहां आओ मिरी मदद को ए मुख़्तारे-दो जहां मँझधार में किनारा दिया आपने सदा आये हो बनके आप ही
हिज्रे तन्हाई शब गुजारी है। आ भी जाओ के अब तैयारी है। शुक्रिया कहूं तो मैं कैसै कहूं, अभी उनकी बहुत उधारी है। दिल तो
तनहा तनहा सफ़र लगने लगा है। दिले नादान क्या कहने लगा है।। गये क्या बज़्म से वो रूठ करके, इक दरिया अश्क का बहने लगा
आजकल मुस्कराने लगे हैं कुचल कर फूल सा दिल मेरा वो, आजकल मुस्कराने लगे हैं। जिनसे मतलब नहीं था कभी भी, उनकी
बाखब़र होके मगर सोता रहा। तमाम रात सितम होता रहा।। मजाल समंदर की कुछ भी नहीं, माझी ही कश्तियां डुबोता रहा।। ये कैसा मर्ज़ है
शाख से टूटा है, क्या जाने किधर जायेगा। हवा चली है तो कुछ जे़रो ज़बर जायेगा।। जिगर के खून से हमने लिखे हैं खत इतने,
शबनमी शोले वस्ल-ए- शबाब और क्या क्या। लचकती शाख पे ताजा गुलाब और क्या क्या। जमाले रुख पे कातिल अदा नशीली नज़र ज़मीं पे आगया
मैने मतलब नहीं रखा जहाँ से। दिले नादान ये हलचल कहाँ से। मकान सूना सूना लग रहा है, कोई रुखसत हुआ रोकर यहाँ से।। पुराने
अक्सर मुझे आज़माने की खातिर। वो जलता रहा खुद जलाने की खातिर।। मुहब्बत में आये तो इक बात समझी, ये आंखें हैं आंसू बहाने की