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हर मंज़र आज़ार हुआ
दरवाज़ा दीवार हुआ बिन दस्तक बेज़ार हुआ रिश्तों के सब झूठ खुल गए जब मोहसिन तलवार हुआ लंबी चुप और दिल भी खाली, निस्बत की
दरवाज़ा दीवार हुआ बिन दस्तक बेज़ार हुआ रिश्तों के सब झूठ खुल गए जब मोहसिन तलवार हुआ लंबी चुप और दिल भी खाली, निस्बत की
यादों का मौसम लौटा और ख्वाबों की तन्हाई भी मद्धम सा इक चाँद मिला और आँखों में परछाई भी साहिल पर कुछ शंख मिले थे
मुसलसल गम मेरे हालात में है। मैं तनहा नहीं जख्म साथ में है।। ज़माने भर की दौलत फीकी लगे, जो सुकूं वस्ल-ए-लम्हात में है।। जरा
तीर जितने उसने मारे सब निशाने पर लगे । ज़ख्म सब के सब पुराने ज़ख्म से बेहतर लगे । हो गया है जाने मुझको क्या
गमे रुसवाई ज़ख्म दर्द-ए- जलन क्या है। ऐ नये साल बता तुझमें नयापन क्या है।। चांद को छूने की उम्मीदें पाल ली हमने, पूरी जो
आप साँसों में हो ज़िंदगी की तरह हर अँधेरे में हो रौशनी की तरह आपसे ही है कायम ये सारा जहां आप फूलों में हो
एक पत्थर और मारो अब तलक़ ज़िंदा हूँ मैं । या कोई ख़ंजर निकालो अब तलक़ ज़िंदा हूँ मैं । है बदन छलनी मगर इन
तुम्हारे शब्दों के लिहाफ में गरमी बहुत है lलेकिन फिज़ा में आजकल सरदी बहुत है ll ये धरती है बिछौना मेरा, चादर है आसमांजिस्म थक
जिंदगी के इस सफ़र की,कब सुबह और रात कब lसोचता है लूट कर, कैसी रही वह रात कल lआया नहीं, कोई भी मक़्सूद देखो इस
सूरज भी चाँद बन यादों से उलझ गया है lतुम्हारी बातों का शजर जानें किधर गया है ll बैठते थे, दोनों के जज़्बात जिसपरबात सुन,चहचाती