गज़ल

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हर मंज़र आज़ार हुआ

दरवाज़ा दीवार हुआ बिन दस्तक बेज़ार हुआ रिश्तों के सब झूठ खुल गए जब मोहसिन तलवार हुआ लंबी चुप और दिल भी खाली, निस्बत की

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गज़ल-मुसलसल गम मेरे हालात में है

मुसलसल गम मेरे हालात में है। मैं तनहा नहीं जख्म साथ में है।। ज़माने भर की दौलत फीकी लगे, जो सुकूं वस्ल-ए-लम्हात में है।। जरा

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गमे रुसवाई

गमे रुसवाई ज़ख्म दर्द-ए- जलन क्या है। ऐ नये साल बता तुझमें नयापन क्या है।। चांद को छूने की उम्मीदें पाल ली हमने, पूरी जो

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बाँसुरी की तरह

आप साँसों में हो ज़िंदगी की तरह हर अँधेरे में हो रौशनी की तरह आपसे ही है कायम ये सारा जहां आप फूलों में हो

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गज़ल-एक पत्थर और मारो अब तलक़ ज़िंदा हूँ मैं ।

एक पत्थर और मारो अब तलक़ ज़िंदा हूँ मैं । या कोई ख़ंजर निकालो अब तलक़ ज़िंदा हूँ मैं । है बदन छलनी मगर इन

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तुम्हारे शब्दों के लिहाफ में

तुम्हारे शब्दों के लिहाफ में गरमी बहुत है lलेकिन फिज़ा में आजकल सरदी बहुत है ll ये धरती है बिछौना मेरा, चादर है आसमांजिस्म थक

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इस सफ़र की

जिंदगी के इस सफ़र की,कब सुबह और रात कब lसोचता है लूट कर, कैसी रही वह रात कल lआया नहीं, कोई भी मक़्सूद देखो इस

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सूरज भी चाँद बन

सूरज भी चाँद बन यादों से उलझ गया है lतुम्हारी बातों का शजर जानें किधर गया है ll बैठते थे, दोनों के जज़्बात जिसपरबात सुन,चहचाती

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