
ज़िन्दगी दामन जला दे और क्या
ज़िन्दगी दामन जला दे और क्या । हँस पड़ा था ग़म बढ़ा दे और क्या । प्यार की ख़ातिर तना था तीर सा । प्यार

ज़िन्दगी दामन जला दे और क्या । हँस पड़ा था ग़म बढ़ा दे और क्या । प्यार की ख़ातिर तना था तीर सा । प्यार

मैं मेरी तन्हाइयाँ थीं और थीं ख़ामोशियाँ सिर्फ़ इतना ही बचा था तेरे मेरे दरमियाँ गर तुझे मालूम होतीं इश्क़ की गहराइयाँ तो समझता क्यूँ

यूंँ ज़िंदगी में गलतियांँ दोहराई नहीं जाती, यूंँ बात सभी की दिल से लगाई नहीं जाती। परिंदे हैं, उड़ने दो इन्हें उन्मुक्त गगन में ,

किससे किसकी यारी है दुनिया कारोबारी है ! जाल बिछा है, दाने हैं दुबका वहीं शिकारी है ! मंचों पर जोकर काबिज प्रहसन क्रमशः जारी

अशेष अनुराग से गुड़िये को सजाती तुम बिसर जाती हो खाना-पीना बुदबुदाती है माँ झिड़कियाँ सुनाती है बेपरवाह, तन्मय तुम क्या कुछ गाती-गुनगुनाती हो रचाती

जीवन के दिन चार बन्धुवर किससे क्या तकरार बन्धुवर ! आज रू-ब-रू जी भर जी लें कल का क्या एतबार बन्धुवर! सुख तो एक तसव्वुर

है जिंदगी तू बनू कहानी में सुनती रहे तू ऐसी बानी मैं गुन -गुनाऊ मैं बन जाए गीत तू साज हो धड़कन मेरी हो जाए

तू जानता है तुझे मैं भुला नहीं सकता मैं आरज़ू का क़िला ख़ुद ढहा नहीं सकता करे तू लाख सितम या मुझे फ़ना कर दे

चार पैसे की जिंदगी ,लाखों कमाने लगे हम अपने घरों से दूर जाने लगे मां-बाप ना घर द्वार मिले ,पैसे की रस्म निभाने लगे बीवी

तुम्हारी राह में फूलों की पंखुरियाँ बिछा दे बस । ख़ुदा तुमको ज़माने भर की ख़ुशियों से नवाज़े बस । महक उठ्ठे तुम्हारी दीद के