पार जाना है
किनारे ही बैठ केवल कुलबुलाना है कि साथी पार जाना है ? है हवा प्रतिकूल,विस्तृत पाट,धारा भँवर वाली बधिर बाधाएँ- करें हम प्रार्थना या बकें
किनारे ही बैठ केवल कुलबुलाना है कि साथी पार जाना है ? है हवा प्रतिकूल,विस्तृत पाट,धारा भँवर वाली बधिर बाधाएँ- करें हम प्रार्थना या बकें
तुम्हारी याद जैसे घने जंगल में भटके हुए पिपासाकुल बटोही के कानों में बज उठे किसी निर्झर की आहट का जलतरंग ! तुम्हारी याद जैसे
छा गये आकाश में बरसात के बादल ! गरजते , नभ घेरते ये जलद कजरारे झूमते ज्यों मत्त कुंजर क्षितिज के द्वारे बजा देंगे हर
बेदर्दों को दर्द सुना कर,क्या होगा बहरों की महफ़िल में गा कर क्या होगा ! आस्तीन में जिसने पाला साँप यहाँ कहिए उस से हाथ
बाज़ारी आँधी में जीवन-मूल्य हुए तिनके ! बाहर- बाहर चमक-दमक भीतर गहराता तम दीमकज़दा चौखटों पर लटके परदे चमचम संवेदन-स्वर क्षीण-क्षीणतर खनक रहे सिक्के !