गज़ल

Category: गज़ल

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कुछ गजलें

मेरी ये बात लोगों को नहीं भाती कि मैं अक्सर, जो वाबस्ता हो तुझसे ऐसा क़िस्सा छेड़ देता हूँ। ये दुनिया वाले ऐसे ही मुझे

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वो जिसके वास्ते जनमों जनम ठहरा रहा होगा

वो जिसके वास्ते जनमों जनम ठहरा रहा होगा उसी के आने जाने पे कड़ा पहरा रहा होगा बहारों की ये ख़्वाहिश उसके भी सीने में

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मान लेंगे वो बुरा तो मुस्कराना छोड़ दें

मान लेंगे वो बुरा तो मुस्कराना छोड़ दें किस सबब उनकी जलन में गीत गाना छोड़ दें अपना तो हर धर्म ईमां हर चलन है

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छिप छिप के तीर

छिप छिप के तीर दिल पे चलाते हो किसलिए यूँ दुश्मनी मेरे से निभाते हो किसलिए जाना ही है तो पास ही आते हो किसलिए

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गज़ल

मीत

बस गए जो दिल में आके दिल के वही मीत थेदिल से जो निकल गए ओ ढोग के प्रतीक थेस्वार्थ भाव जब उगा भावना के

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