गज़ल

Category: गज़ल

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सावन का महीना दर्ज़ कर देना

महीनों में ये सावन का महीना दर्ज़ कर देना। बिना उनके गुज़ारा था बुझा-सा दर्ज़ कर देना। तमन्ना टूट कर बिखरी, मुहब्बत का भरम टूटा,

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झूठे फसानों से

किसी भी झूठे फसानों से, ख़ून बहता है। हक़ीक़त अब कि तानों से, ख़ून बहता है। छिपाना भी नहीं मुमकिन जमाने से शाय़द, कि कातिलों

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नफ़रत के सिलसिले को हमें तोड़ना है तो

सनातन को मापने के तराज़ू निकल पड़े। ये देखकर मेरे भी अब आंँसू निकल पड़े। मासूम हाथ में तो थमा दे क़लम कोई, ऐसा न

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क्या चाहिए था

मुझे इश्क़ में और क्या चाहिए था। फकत रहनुमा, आप सा चाहिए था। इशारों इशारों में मुझको बुलाकर, उसे हाले दिल, पूछना चाहिए था। हुई

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और कुछ

वो इशारा कर रहा था और कुछ। अंत में निकला तमाशा और कुछ। देखिए हमको यहांँ पर क्या मिला, चाहते थे हम भी पाना और

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चेहरे

देखकर आज काग़ज़ी चेहरे। याद आए थे शबनमी चेहरे। अब कहांँ दिखती हैं हंँसी सूरत, भूल बैठे हैं सादगी चेहरे। अपनों को भूलते सभी जा

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