होड़
नये-नये उत्पाद /रंग-बिरंगे दूरदर्शनी सतरंगे परदे पर विज्ञापन-बाढ़ ! एक को ठेलती दूसरी लहर तीव्रतर भारी शोर है भीषण होड़ है ! एक दाँत चमका
नये-नये उत्पाद /रंग-बिरंगे दूरदर्शनी सतरंगे परदे पर विज्ञापन-बाढ़ ! एक को ठेलती दूसरी लहर तीव्रतर भारी शोर है भीषण होड़ है ! एक दाँत चमका
कोई मौसम हो,जाने क्यों पतझर लगता है! अपने घर में ही अनजाना-सा डर लगता है! कितना छोटा और अनिश्चित कितना जीवन ऊब, उदासी,उलझन कितनी-कितनी अनबन
हर शख़्स है तना हुआ कमान की तरह अपने ही पेश आ रहे अनजान की तरह। जिस घर को सजाने में मैं ख़ुद बिखर गया
बहुत रस लिया पर-निन्दा में ख़ुद में कब झाँकेंगे हम? तन्द्रिल, निद्रित रहे आज तक आख़िर कब जागेंगे हम? नकली रुदन,हास नकली है चढ़ा मुखौटा
यह जीवन पथ आसान नहीं। झंझा झकझोरती है पल-पल, अमावस्या की काली रातों में, है गात ,कांप जाते देखो- हीम मिश्रित ठंडी वातों से। कंपकंपाती
घिर गया आजकल मैं सवालों में हूँ कुछ ख्वाबों में हूँ , कुछ ख़यालों में हूँ! रात है या कि दिन कुछ ख़बर ही नहीं
अँधेरा कमरे को लील रहा प्रकाशदात्री पुस्तकें अदृश्य हैं ! टटोलता हूँ मोमबत्ती ढूँढता हूँ माचिस मुश्किल से घिसता हूँ तीलियाँ कई बार कोशिश बेकार
रोक रोने पर,यहाँ हँसना मना है कहाँ जाएँ , वर्जना ही वर्जना है ! ठोकरों में दर-ब-दर है भावना आदमी के सिर चढ़ी है तर्कना
मान बेच कर सुविधा पाना-तौबा-तौबा साहब के तलवे सहलाना- तौबा-तौबा ! मिहनत-मजदूरी का रूखा-सूखा अमृत हया गँवा कर हलवा खाना-तौबा-तौबा! गली-गली में, गाँव-शहर में,डगर-डगर में
फेंकते हैं वे मुट्ठीभर मूढ़ी धक्का-मुक्की करतीं देह पर देह लदीं उपलाती हैं-मछलियाँ प्रसन्न होते हैं पोखरपति उनकी अहेरी आँखों में प्रतिबिम्बित हो उठता है