चाँदी के फूल
हरसिंगार-टहनी पर चाँदी के फूल खिले जाने किन सुधियों में औचक ये होंठ हिले ! राहें थीं विजन-विजन थका-थका बोझिल मन ऐसे में , कैसे
हरसिंगार-टहनी पर चाँदी के फूल खिले जाने किन सुधियों में औचक ये होंठ हिले ! राहें थीं विजन-विजन थका-थका बोझिल मन ऐसे में , कैसे
सामने जो बहुत मीठा बोलता है वही पीछे में ज़हर भी घोलता है! दिल भरा है ,पर सुनायें क्या,किसे? यहाँ तो हर शख़्स जेब टटोलता
क्या चाहती है चिड़िया ? चोंच भर दाना/आज़ाद उड़ानें हरी -भरी डाल पर तिनकों का छोटा-सा आशियाना चाहती है चिड़िया सघन कुंज/ फूले-फले वाटिका-बाग बालियों
अधनंगे लोगों का वृत्त में जमाव ताप तनिक , धुआँ अधिक सुलगता अलाव । किस्सों – बुझौवलों से बने नहीं बात मालिक के सूद सरिस
कंबलों को तहियायें,समेटें रजाइयाँ मलयानिल मन्द-मन्द लेता अंगराइयाँ ! प्रकृति-पांचाली का पत्र-चीर है अछोर शिशिर बना दुःशासन – थक गयी कलाइयाँ । रूखी इन शाखों
तुम्हारे साथ आता है एक मौसम मेरे पास रंग-रूप-सुवास का मौसम तृप्ति-विश्वास का मौसम जीवन के गहरे स्वीकार-सत्कार का मौसम मौसम अछोर संवादों का मयूरपंखी
पावन धरती यह बिहार की इसको प्रनमन ! वैशाली ने अखिल विश्व को नव गणतंत्र दिया है महावीर ने मानवता को अमृत मंत्र दिया है
सुर्खियाँ ढो रहीं वहशत प्रीत ख़ातिर हाशिये हैं मेमनों के मुखौटों में घूमते अब भेड़िये हैं ! चबाते नाकों चने जो नेकियों की राह चलते
है समष्टि चेतना का नाम कुँवर सिंह आदमी की मुक्ति का पैगाम कुँवर सिंह पुत्र वही मातृ-क्षीर की रखे जो लाज मातृभूमि-भक्ति का परिणाम कुँवर
बुलबुले-सा बनता-मिटता जाएगा शिकवा-गिला टूटने पाये न अपने स्नेह का यह सिलसिला । व्यर्थ की बातों में बहकेंगे-बँटेंगे हम अगर ध्वस्त होगा किस तरह फिर