प्रार्थना
पाप-अनल से घिरा हुआ जग, मनुज दुखी रोता है दया करो हे! जग-दुःख-त्राता, दास विनती करता है कृपासिंधु तुम! बूंद कृपा की, जीवन पर बरसा
पाप-अनल से घिरा हुआ जग, मनुज दुखी रोता है दया करो हे! जग-दुःख-त्राता, दास विनती करता है कृपासिंधु तुम! बूंद कृपा की, जीवन पर बरसा
भूल गया अब याद नहीं कुछ मानव को जीवन में अर्थ-अर्थ की दौड़ लगी है जीवन के प्रांगण में भूल रहा मानव मानवता अर्थ-स्वार्थ-चिंतन में
जाग मनुज अब हुआ सबेरा विहग-वृन्द ने तरु-वृंत पर निकल नीड़ से डाला डेरा नव-प्रभात की प्रथम किरण में खग-कुल ने मधु गान है छेड़ा