पद्य-रचनाएँ

Category: पद्य-रचनाएँ

गीत

कान्हा संग खेलें होली

चलो नंदलाल के भवन में कान्हा संग खेलें होली। थोड़ी खेलेंगे हम होली, थोड़ी करेंगे ठिठोली —२ सलाह करे आपस में मिलके सखियां सब भोली-भोली।

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गीत

होरी गिरि कैलाश पे

होरी गिरि कैलाश पे खेलत गौरीशंकर। होरी….. रंग अबीर लिया माता ने, चिताभस्म प्रलयंकर। तारी दे दे नाचत गावत भूत पिशाच भयंकर।। होरी…. एक पाँव

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गीत

गोरी रंग लेकर आई

नीला पीला लाल गुलाबी, गोरी रंग लेकर आई। फागुन आयो रंग रंगीलो, उर उमंग मस्ती छाई। रसिया नाचे ढप बजावे, आज बिरज में होली है।

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गीत

होली (गीत)

होली———————————————-१ बरस रहा है पिचकारी से, लाल गुलाबी रंग। रंग बिरंगी बौछारों से ,पुलक उठा हर अंग।। होली होली हुरयारों का ,गूँज रहा है शोर

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कविता

प्रेम का घड़ा

मीठे पानी सेभरी हुई यह धरतीफागुन की धूप मेंतपने लगीवसंत की हवाजंगलों में दौड़तीनदी के किनारेआयीयहां बाग बगीचों मेंपेड़ों से पीले पत्तेझड़ने लगेडालियों परनये पत्ते

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कविता

पहाड़ों के भीतर

हल्द्वानी सेपहाड़ों पर लंबी चढ़ाईअल्मोड़ा केआसपास से गुजरतेनैनीताल जाने वालीरोड के मोड़ पर रुककरचाय पीतेयात्रियों से बागेश्वर केबारे मेंबातचीत करतेहम शाम तकजंगलों से बाहरपिथौरागढ़ चले

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कविता

होली आई

होली आई होली आई ,रंगों की बहार है लाई।होली आई होली आई ।।रंग – बिरंगे गुलालों के संग,मिलकर हम सब हमजोली ।स्नेह और सौहार्द के

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