मुक्तक
कोई आबाद करता है कोई बरबाद करता है। सदा हम भूलते उसको जो इसे आज़ाद करता है। खडा हूँ एक ऐसी ही बेगानों की मैं
कोई आबाद करता है कोई बरबाद करता है। सदा हम भूलते उसको जो इसे आज़ाद करता है। खडा हूँ एक ऐसी ही बेगानों की मैं
कट-कट दन्त करें झर-झर कुहासा गिरे, कोमल बदन शीत थर थर कँपावत है। खर पतवार सब बीनि के एकत्र करें, सूखी घास ठण्डी में सब
पालते लाड प्यार से, ममता दुलार से।खुशियों बहार से, मीठी पुचकार से।रखे औलाद को, दुनिया में मां बाप।आंखों का तारा हमे, दिलों के तार से।
जो खो गई हैं चाहतें उनको तलाश दो मोहब्बत की राह में हूँ कोई खराश दो मासूमियत को ही मेरी संगशार कर दिया पत्थर सा
उमंगों की पतंगे लेकर आओ मचाए हम भी शोर।गली गली घूमते गाते चले आई है सुहानी भोर।जीवन में उड़ानें भर आओ चले खुशियों की ओरप्यार
सर्द हवा ठंडी ठंडी, बहती है पुरजोर।ठिठुरते हाथ पांव, अलाव जलाइए। कोहरा छा जाए जब, शीतलहर आ जाए।कंपकंपी बदन में, ठंड से बचाइए। सूरज सुहाती
अब अपने किरदार से, इंसाफ कर दिया जाए, अंधेरे घर में अब एक,चिराग रख दिया जाए । जब तक कोई भूखा सोए, मेरे देश में
टूटे मन के भ्रम सभी,हुआ नहीं विश्वास, प्रण कर ले अब तो मना,नहीं किसी की आस। नहीं किसी की आस,भरोसा खुद पर करना, रिश्ते तो
एक एक ग्यारह बने, तीन पाँच को छोड़ भाग घटाना त्याग कर, अपना गुणा व जोड़ अपना गुणा व जोड़, शून्य को साथ मिला कर,
बस गए जो दिल में आके दिल के वही मीत थेदिल से जो निकल गए वो ढोंग के प्रतीक थेस्वार्थ भाव जब उगा भावना के