हर तरफ बबूल !
माँगना न गीत अब गुलाब के ज़िंदगी की हर तरफ बबूल ! सुबह-शाम पेट का सवाल है बतिआयें प्यार, यार!किस तरह? पतझरी उदासी है रू-ब-रू
माँगना न गीत अब गुलाब के ज़िंदगी की हर तरफ बबूल ! सुबह-शाम पेट का सवाल है बतिआयें प्यार, यार!किस तरह? पतझरी उदासी है रू-ब-रू
सच हुआ नहीं सपनासच क्या होगासपना है! चाहा करना सच स्वप्नयही क्या कम है ?आहत,मर्माहत हुआनहीं कुछ ग़म हैकुन्दन बनने के लिएसदा कंचन कोतपना है
बटोही जैसे जुगाता है गठरी चिड़िया अंडा जुगाती है जुगाये हमने बीज बोया-लगाया खेतों में कि लहलहायेगी फसल बालियाँ खनकेंगी खिलखिला उठेगा खलिहान फ़कत बीज
पावन धरती यह बिहार की इसको प्रनमन ! वैशाली ने अखिल विश्व को नव गणतंत्र दिया है महावीर ने मानवता को अमृत मंत्र दिया है
तुम्हारे साथ आता है एक मौसम मेरे पास रूप-रंग-सुवास का तृप्ति ,विश्वास का जीवन के गहरे स्वीकार का मौसम ! मौसम अछोर संवादों का मोरपंखी
किनारे ही बैठ केवल कुलबुलाना है कि साथी पार जाना है ? है हवा प्रतिकूल,विस्तृत पाट,धारा भँवर वाली बधिर बाधाएँ- करें हम प्रार्थना या बकें
तुम्हारी याद जैसे घने जंगल में भटके हुए पिपासाकुल बटोही के कानों में बज उठे किसी निर्झर की आहट का जलतरंग ! तुम्हारी याद जैसे
छा गये आकाश में बरसात के बादल ! गरजते , नभ घेरते ये जलद कजरारे झूमते ज्यों मत्त कुंजर क्षितिज के द्वारे बजा देंगे हर
किताब में फूल की सूखी पंखुड़ी मिली है। रास्ता मिलता रहा पर मंज़िले ,ना मिली है। तुम्हारे दरों दीवार को पहचानता हूं, तेरे चेहरे की
चांद निकला गगन में, हंसी चांदनी, तो मगन हो के धरती क्या हंसने लगी? माना हंसते हो कुछ पादप लता- संग बेला, चमेली, रातरानी भले,