एक गीत लबों पर आया है
अश्कों को पलकों पे सजाया है, एक गीत लबों पर आया है । कहां से चले और कहां पे पहुंचे, ये दौर कहां पर हमें
अश्कों को पलकों पे सजाया है, एक गीत लबों पर आया है । कहां से चले और कहां पे पहुंचे, ये दौर कहां पर हमें
प्राप्त है जितना वही पर्याप्त होना चाहिए आंखों में आंसू नही मुस्कान होनी चाहिए गम में रहकर भी खुशी का भाव होना चाहिए एक सा
गुमसुम उदास सी बैठी हो मैं पास तेरे आ जाऊं क्या फूलों का गजरा बंन तेरे बालों को महकाऊ क्या खिले सुनहरी धूप तेरे होठों
बाहर है सब भरा – भरा / अन्तर्घट रीता का रीता ! कितना निष्फल,कितना दारुणजो समय अभी तक बीता ! सारे रिश्ते ज्यों लाल मिर्चलाली
पिछले हैं जख्म हरे ,दहशत का साया है विज्ञापन पर सवार नया साल आया है ! थिरक रहे साहब जी,हल्कू हलकान बहुत नगरों में नाच-गान,
कलियों की कनखियाँ, फूलों के हास क्यारियों के दामन में भर गया सुवास बागों में लो फिर वसन्त आ गया ! मलयानिल अंग- अंग सहलाता
धूप में वापिस तपिश आने लगी फिर हवाओं में घुली ख़ुशबू ! पतझरी मनहूसियत के दिन गये हर नयन में उग रहे सपने नये ठूँठ
प्यासी धरती का आमंत्रण बादल आये ! मगन मयूरों का मधु नर्तन बादल आये ! अम्बर से अमृत छहरेगा रसा-रूप नित-नित निखरेगा मुरझाये सपने हरिआये
चमचम कटोरी में दूध-भात खाता है बाअदब पुकार कर जगाता है स्वामी को सुबह-सुबह पिंजड़े का सुगना फिर राम-नाम गाता है ! धोंसले की झंझट/
हरसिंगार-टहनी पर चाँदी के फूल खिले जाने किन सुधियों में औचक ये होंठ हिले ! राहें थीं विजन-विजन थका-थका बोझिल मन ऐसे में , कैसे