गज़ल

Category: गज़ल

मान बेच कर सुविधा पाना-तौबा-तौबा

मान बेच कर सुविधा पाना-तौबा-तौबा साहब के तलवे सहलाना- तौबा-तौबा ! मिहनत-मजदूरी का रूखा-सूखा अमृत हया गँवा कर हलवा खाना-तौबा-तौबा! गली-गली में, गाँव-शहर में,डगर-डगर में

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झूमती फूलों भरी डाली लिखें

झूमती फूलों भरी डाली लिखें हर शजर के लिए हरियाली लिखें । सूर्य-किरणों के लिए सादर नमन अमरबेलों के लिए गाली लिखें । रू-ब-रू है

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दर्द की परछाइयाँ

दर्द की परछाइयाँ भीड़ में है आदमी पर ढो रहा तनहाइयाँ घेरती हैं ज़िन्दगी को दर्द की परछाइयाँ ! वायदे ,नारे सुनहरे कब निभाएँगे जनाब

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चाँदनी के लिए

तीरगी-तीरगी बढ़ रहे ये क़दम चार पल की मधुर चाँदनी के लिए । दरमियाँ दो दिलों के बहुत फासला छू रही है शिखर छल-कपट की

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फिर भी लिखना है

किसको फ़ुर्सत पढ़े-सुनेगा ? फिर भी लिखना है,गाना है ! ख़ुदगर्जी की होड़ मची है मतलब के सब नाते हैं मन में कपट और कटुताएँ

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