गज़ल

Category: गज़ल

गज़ल

देखता रहा(गज़ल)

यूँ साजिशों की उठती नज़र देखता रहा कितना सहेगा मेरा जिगर देखता रहा जिनकी जफाओं से यहाँ कितने ही दिल दुखे उल्फत का ताज उनके

विस्तार से पढ़ें »

साहिब(गज़ल)

गुबारे दिल न जाने कब से है रोका हुआ साहिब तुम्हें पहचानने में है मुझे धोखा हुआ साहिब हुये थे जब मुहब्बत में ये इक

विस्तार से पढ़ें »

प्यार बदला है

समय के साथ बदले यार,उनका प्यार बदला है, नहीं बदला तो केवल मैं,मेंरा अधिकार बदला है। वही हम हैं, वही हैं यार,जमाना भी वही है

विस्तार से पढ़ें »

अपना बनाया क्यों,

दिया धोखा मुझे तुमने तो फिर अपना बनाया क्यों, कोई तुमको पसंद था और तो मुझको सताया क्यों। तुम्हारी मंजिलें थी क्या?था मकसद तुम्हारा क्या?

विस्तार से पढ़ें »
Total View
error: Content is protected !!