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आशिक़ी
आशिक़ी जब दरमियां बढ़ने लगी बिन तेरे तन्हाईयां बढ़ने लगी आस है तेरे मिलन की इसलिए दिन-ब-दिन बेताबियां बढ़ने लगी ज़िक्र तेरा महफिलों में जब
आशिक़ी जब दरमियां बढ़ने लगी बिन तेरे तन्हाईयां बढ़ने लगी आस है तेरे मिलन की इसलिए दिन-ब-दिन बेताबियां बढ़ने लगी ज़िक्र तेरा महफिलों में जब
मेरी तनहाई का सहारा हैये नदी का जो इक किनारा है मन करे जब भी लौट आना तुमदिल मेरा आज भी तुम्हारा है मेरी आंखो
कल तक तो चांद चमकता था, जाने क्यों मैला मैला सा हो गया । मधुबन में गुंजन करने वाला, कहां पता किस ओर गया ।।
इश्क़ में ज़िन्दगी फ़ना होगी कारगर अब मेरी दुआ होगी आज फिर दिल मेरा ये टूटा है उसने ग़ैरों से की वफ़ा होगी पास उसके
तुम मेरे ख़्वाबों में आना छोड़ दो इश्क़ मेरा आज़माना छोड़ दो मैं बुलाऊं जब तुम्हें आया करो करना मुझसे अब बहाना छोड़ दो ‘मन्तशा’
तुम्हारा जब से सजदा कर लिया है ये अपना वक्त अच्छा कर लिया हैं तुम्हारे नाम की मालाएं जप कर अजब दिल ने तमाशा कर
होके तुझसे जुदा दूर जाना नहीं दिल का तेरे सिवा कुछ ठिकाना नहीं । रोज़ आओगे तुम मुझसे मिलने सनम मैं सुनूंगी कोई भी बहाना
दर्द मुझको यहां मिला है बहुत। जिंदगी ही तो इक सजा है बहुत। दिल लगाने की ज़िद करे न कोई, घाव मेरा अभी हरा है
दुनिया को हाल ही नहीं हुलिया भी चाहिए। जन्नत के साथ में हमें दुनिया भी चाहिए। तन कर खड़ा रहा जो कहीं पर मिला नहीं,
लगता है अब दहशत कम है। या योगी को फुर्सत कम है। बच्चों को ही आगे कर दो, हाथों में अब पत्थर कम है। बाज