गज़ल

Category: गज़ल

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आशिक़ी

आशिक़ी जब दरमियां बढ़ने लगी बिन तेरे तन्हाईयां बढ़ने लगी आस है तेरे मिलन की इसलिए दिन-ब-दिन बेताबियां बढ़ने लगी ज़िक्र तेरा महफिलों में जब

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गज़ल

ख़्वाबों में आना छोड़ दो

तुम मेरे ख़्वाबों में आना छोड़ दो इश्क़ मेरा आज़माना छोड़ दो मैं बुलाऊं जब तुम्हें आया करो करना मुझसे अब बहाना छोड़ दो ‘मन्तशा’

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