
तुम्हें क्या लिखूं
तुम्हें क्या लिखूं मनमोहनी हो तुम, मन के भीतर रहने वाले क्या मैं तुमको मनमीत लिखूं… फूलों सी मुस्कराती हो दिल को तुम बहलाती हो।

तुम्हें क्या लिखूं मनमोहनी हो तुम, मन के भीतर रहने वाले क्या मैं तुमको मनमीत लिखूं… फूलों सी मुस्कराती हो दिल को तुम बहलाती हो।

सियासत ने वतन को बदनाम कर रखा है। झूठे लोग औ झूठी सियासत ने, मासूमों को गुमराह कर रखा है।। हर तरफ पहरेदारी है, हर

अभी तो शाम बाकी है जरा सूरज ये ढलने दो चले जाना कहाँ रोका है चंदा तो निकलने दो नहीं रोको नहीं मुझको मैं तो

मुझे गिराने की जिद जमाना कर रहा है, मुझको मिटाने कोशिश जमाना कर रहा है । वक्त से जंग आजकल, मेरी,चल रही है, कभी मैं

इन्सां मर भी जाये चेहरा रह जाता है । अब्बा चल देते हैं बेटा रह जाता है । किसने किसको चाहा किसने नफ़रत की थी

बह गये हैं याद के घर वक़्त के सैलाब में । झर गये सुरख़ाब के पर वक़्त के सैलाब में । मौन के पर्वत ठहाकों

इमली के पेड़ों के पीछे छुपे हुए हो तुम । या मौसम की बेचैनी में भरे हुए हो तुम । नदिया की नीली आँखों में

उनको हमसे प्यार नहीं है क्या मुश्किल है । हालांकी इनकार नहीं है क्या मुश्किल है । अपनेपन की रजनीगन्धा महक रही है । रिश्तों

दूर तक सूखे हुए पत्ते मुहब्बत के । खिल नहीं पाये कभी गुंचे मुहब्बत के । किस क़दर कमज़ोर थे अपने नशेमन भी । आंधियों

जब होंठ पर हँसी आती तो खिलते हैं रिश्तें, अपनो से अकारण बिछड़ने से डरते हैं रिश्तें। दुनियावी लोग सभी जब यहाँ छोड़ जाते है,