गज़ल

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एक ताज़ा ग़ज़ल -यादों के आईनों में रह जाते हैं

यादों के आईनों में रह जाते हैं । जाने वाले आंखों में रह जाते हैं । ख़ुशबू बन कर उड़ते हैं फिर बाग़ों में ।

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तेरे सिवा

एक तेरे सिवा कोई भी,हमारा नहीं है, हमने ऐसे तो किसी को,पुकारा नहीं है ।। ये इश्क भी तो है एक,दरिया के जैसे, इसमें दिखता

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अब कोई खिलता नहीं है गुल मेरे गुलदान में

अब हमारे इश्क़ के ,खाली खज़ाने हो गएअब नहीं चलते हैं ,सिक्के जो पुराने हो गए जो हमें देखा किये सड़कों पे मुड़ मुड़ के

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शफक

वो वक्त जबएक दीर्घ यात्राके बादनिस्तब्ध दिशा पश्चिम मेंअस्ताचल की औरजाते सूरज कीशफक भाव विभोर करती हैंआँख से आत्मा तकएक वन्दनीय छवि उकरआती हैंसौम्यता से

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ख्वाब

नजरें मिलाने को बेताब थे गर मिले तो ये क्या हो गया ख्वाब – ख्वाबों में ही खो गया।। वासना होती क्षणिक है, जलधार मे

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जीना सीखा है

इक फूल सी बच्ची को मैंने, कबाड़ उठाते देखा है। पंखुड़ियों से हाथ हैं जिसके, खुद का भार उठाते देखा है।। कोई उसका नही तो

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