
गज़ल-धूप का पर्वत खड़ा है सामने
धूप का पर्वत खड़ा है सामने । और लम्बा रास्ता है सामने । फिर कोई मासूम सी चाहत जगी । फिर भरम का सिलसिला है
धूप का पर्वत खड़ा है सामने । और लम्बा रास्ता है सामने । फिर कोई मासूम सी चाहत जगी । फिर भरम का सिलसिला है
ऐसा तो कुछ नहीं कि मर ही जाएं ख़ुशी से । औ ग़म भी गुज़रते नहीं हैं अपनी गली से । उस चाँद सी हँसी
यादों के आईनों में रह जाते हैं । जाने वाले आंखों में रह जाते हैं । ख़ुशबू बन कर उड़ते हैं फिर बाग़ों में ।
एक तेरे सिवा कोई भी,हमारा नहीं है, हमने ऐसे तो किसी को,पुकारा नहीं है ।। ये इश्क भी तो है एक,दरिया के जैसे, इसमें दिखता
अब हमारे इश्क़ के ,खाली खज़ाने हो गएअब नहीं चलते हैं ,सिक्के जो पुराने हो गए जो हमें देखा किये सड़कों पे मुड़ मुड़ के
वो वक्त जबएक दीर्घ यात्राके बादनिस्तब्ध दिशा पश्चिम मेंअस्ताचल की औरजाते सूरज कीशफक भाव विभोर करती हैंआँख से आत्मा तकएक वन्दनीय छवि उकरआती हैंसौम्यता से
वक़्त ए रुख़सत ये सिलसिला होगा, तुझसे दिल खोल कर गिला होगा बेवफ़ा हो गया है शायद वो, मुझसे बेहतर कोई मिला होगा, एक मानूस
नज़ारा और कोई किस तरह दिखाए नज़र, तेरे सिवा कोई मौजूद हो तो आए नज़र। वो जिसको देख के अल्लाह याद आता हो, उस एक
नजरें मिलाने को बेताब थे गर मिले तो ये क्या हो गया ख्वाब – ख्वाबों में ही खो गया।। वासना होती क्षणिक है, जलधार मे
इक फूल सी बच्ची को मैंने, कबाड़ उठाते देखा है। पंखुड़ियों से हाथ हैं जिसके, खुद का भार उठाते देखा है।। कोई उसका नही तो