सब्र का अभी तक मेरे
सब्र का अभी तक मेरे इम्तिहान जारी है, रात में चरागों का इंतजाम जारी है। रेत के महल में मेरी इक किताब रखी है, घुल
सब्र का अभी तक मेरे इम्तिहान जारी है, रात में चरागों का इंतजाम जारी है। रेत के महल में मेरी इक किताब रखी है, घुल
जो किस्सा अजनबी था जिन्दगी का, आजकल हमसफर है जिन्दगी का। कोई भी आदमी परिचित नहीं है, बड़ा तन्हा सफर है जिन्दगी का। जो अक्सर
हर खुशी ही रेत सी हरदम फिसल जाती है क्यूँहर घड़ी अब जिंदगी की ग़म में ढल जाती है क्यूँ थाम कर के हाथ जिसका
अभी तो शाम बाकी है जरा सूरज ये ढलने दोचले जाना कहाँ रोका है चंदा तो निकलने दो नहीं रोको नहीं मुझको मैं तो मस्ती
साज़े-दिल पर ग़ज़ल गुनगुना दीजिएशामे-ग़म का धुँधलका हटा दीजिए ग़म के सागर में डूबे न दिल का जहाँनाख़ुदा कश्ती साहिल पे ला दीजिए एक मुद्दत
अभी वो निकली है मयकदे से अभी बहकना है यार बाकीअभी कदम पड़ रहे सही है अभी फिसलना है यार बाकी अभी बहारों के साये
यादों के आईनों में रह जाते हैं ।जाने वाले आंखों में रह जाते हैं । ख़ुशबू बन कर उड़ते हैं फिर बाग़ों में ।तितली के
एक ग़ज़ल मेरे ताज़ा संग्रह ” क्या मुश्किल है ” से ….. सामने बैठी रहो तुम इक ग़ज़ल हो जाएगी ।ज़िन्दगी मेरी यक़ीनन अब सफल
ये रंगीन कागज़ के रिश्ते सम्हालो ।तुम अपनी वफ़ाओं के तिनके सम्हालो । महकने से पहले कहीं झर न जायें ।मुहब्बत के मासूम गुंचे सम्हालो
हम से मुँह फेर कर चाँदनी जा चुकी ।जी रहे हैं मगर ज़िन्दगी जा चुकी । फूल सारे चमन के उसे दे दिए ।इन हवाओं