
हो जाए मेरी अभिलाषा पूरी
छोटी सी है मेरी अभिलाषा, छोटा सा घर हो मेरा, ऊपर प्यारा सा नेम प्लेट मेरे नाम का। घर के बाहर बड़ा सा बगीचा
छोटी सी है मेरी अभिलाषा, छोटा सा घर हो मेरा, ऊपर प्यारा सा नेम प्लेट मेरे नाम का। घर के बाहर बड़ा सा बगीचा
साहित्य बने दर्पण समाज का, अंधेरे मे बने रोशनी की किरण। भावों की बहती गंगा इसमे, जो डूबता तर जाता इसमे, समाज की आत्मा है
विश्व में हो हिन्दी का सम्मान हिंदी है अपनी शान, हिंदी है अपनी पहचान, विश्व में फैलाएँ इसे, यही है अपना अरमान। भाषाओं की रानी
शिक्षक: प्रकाश के समान ज्ञान का दीपक जलाते हैं, अज्ञान का अंधकार मिटाते हैं। जीवन को देते हैं दिशा, सपनों को आकार बनाते हैं। हर
वो पढ़ी, अथक् प्रयास किये,फिर वो आत्मानिर्भर बनी,अपने पैरों पर खड़ी हुई।उसने अपना और अपने माँ पापा का,मान बढ़ाया, सम्मान किया,ज़िम्मेदारी निभाई। कहाँ वो चुक
विधि का विधान भी कैसा है, सबको सबकुछ नहीं मिलता। किसी को मिलता है सागर तो, किसी को एक बूंद भी नहीं मिलता। कोई पढ़
सुकून है वो तोफ़हा जो सबको सब जगह नहीं मिलता, इसे पाने के गर खोना पड़े कुछ तो खोना जरूरी है। एक कप चाय के
श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान श्रीकृष्ण मेरे नटखट गोपाल, यमुना के तट पर रचाये रास। माता इनकी देवकी मैया, यशोदा के भी कहलाए लाल। बचपन
माना- जीवन के ये रास्ते बहुत लंबे है, चारों ओर बाधाएँ है, अंधेरा है, रुकावट है, लेकिन ये लंबे रास्ते पल भर में कट जाएंगे,
जब दिल था निर्मल और चहरे पर मुस्कान थी। न कोई चिंता और न कोई थकान थी। हर सुबह थी नहीं उमंगों से भरी, और