
लड़का ही क्यों?( कहानी)
गाॅंव में सामाजिक परिवर्तन किस तरह से किया जा सकता है,इस संदर्भ में उच्च शिक्षित लड़कों में चर्चा हो रही थी,उसी समय जोर से आवाज
गाॅंव में सामाजिक परिवर्तन किस तरह से किया जा सकता है,इस संदर्भ में उच्च शिक्षित लड़कों में चर्चा हो रही थी,उसी समय जोर से आवाज
महान व्यक्तित्व के धनी बड़का पाँड़े को कौन नहीं जानता। पूरे तहसील में उनका नाम लेते ही अनायास ही लोगों के मुख से निकल जाता
लोग कहते हैं कि मां-बाप के लिए सभी संतान एक जैसी होती हैं पर ऐसा होता कहां है, यह तो सिर्फ कहने सुनने के लिए
घास फूस की झोपड़ी में रहने वाला रामस्वरूप भले हीं अनपढ़ हो पर उसकी कारीगिरी को देखकर लोग दंग रह जाते हैं ,गांव से शहर
हरिपुर के छोटे जमींदार देव बाबू के घर में आज खूब चहल-पहल हो रहा था , चारों ओर खुशियां हीं खुशियां थी । घर के
दर्जन भर सूअरों के पीछे – पीछे दौड़ लगाती हुई सुग्गो जब ब्राह्मण टोला के पास जाती तो नीले और सफेद कपड़ों में सज धज
पारो अपने गांव के मध्य विद्यालय से आठवीं की परीक्षा पास कर आगे की पढ़ाई के लिए गांव से आठ किलोमीटर दूर कुर्साकांटा हाई स्कूल
भूलना भी एक बेहतर आदत है साहब। सबकुछ याद रह जाना भी कोई अच्छी बात नहीं। दरअसल कुछ लोगों की स्मृति इतनी बढ़िया होती है
भारत और नेपाल की सीमा पर बसे एक छोटा सा धर्मपुर गांव हिमालय की गोद में प्राकृतिक सुषमा से सुशोभित अत्यंत रमणीय गांव है। गांव
शकुंतला चाय लेकर बैठक खाने में आई तो पति का खिला हुआ चेहरा देख कर हीं समझ गई कि शायद बात पक्की हो गई ,