योग की मानव जीवन में आवश्यकता
संसार में सामान्य रूप से प्रवृत्ति देखी जाती है कि प्रत्येक प्राणी सुख प्राप्त करना चाहता है एवं दुःखों से बचना चाहता है। मानव भी
संसार में सामान्य रूप से प्रवृत्ति देखी जाती है कि प्रत्येक प्राणी सुख प्राप्त करना चाहता है एवं दुःखों से बचना चाहता है। मानव भी
परिचयः- अनादिकाल से ही पुरूषवादी समाजिक व्यवस्था में स्त्री को दोयम दर्जा प्राप्त हैं। यूँ तो प्रकृति ने स्त्री-पुरूष को समान बनाया, परंतु पुरूषों ने
योग एक प्राचीन भारतीय विद्या है। इसका मूल स्रोत वेदों में प्राप्त होता है, यथा- योगेयोगे तवस्तरं[१], स धीनां योगमिन्वति[२] एवं युज्यमानो वैश्वदेवो युक्तः प्रजापतिर्विमुक्तः
किसी भी देश या प्रदेश के साहित्य के मूल में जनता की चित्तवृत्ति ही होती है। यह चित्तवृत्ति संस्कार, मूल्य तथा आस्था से युक्त होती
समाजवाद, राष्ट्र और चन्द्रशेखर – डाॅ. उमेश कुमार शर्मा समाजवादी विचारधारा ने जितनी अधिक हलचल वर्तमान शताब्दी में उत्पन्न की है, उतनी अन्य किसी भी
हमारे जीवन को सरल, सहज और सफल बनाने में शिक्षा और विद्या दोनों का काफी महत्व है, लेकिन दोनों में कुछ मौलिक अंतर या भेद
प्रकृति का मानव–जीवन में अमूल्य योग रहा है – सृष्टि के आरम्भ से ही | प्रकृति जीवन और साहित्य का प्रमुख उपादान रही है |
गोपाल सिंह ‘नेपाली’ उत्तर छायावाद के प्रतिनिधि कवि हैं | वे प्रेम,प्रकृति और राष्ट्रीयता की गीतिकाव्यधारा के विशिष्ट हस्ताक्षर हैं | इन्होंने आलोचकीय