गद्य–रचनाएँ
एक होली ऐसी भी (कथालेख)
मां मैं बाजार रंग लेने जा रही हूं अरे परी मत जा देख ना कितना हुडदंग हो रहा है होली का इस समय अकेले जाना
मां मैं बाजार रंग लेने जा रही हूं अरे परी मत जा देख ना कितना हुडदंग हो रहा है होली का इस समय अकेले जाना
“पता है आज होली खेली जा रही है.” स्त्री स्वर “हाँ…”, उदासीन पुरुष स्वर. “तो…!!” “तो?” “हम भी खेलें?” “हाँ.” “लो अबीर का थाल.” “थाल?”