कहानी
बँटवारा
गर्मी का मौसम था। सुबह की ठंडी- ठंडी हवा रात की भीषण गर्मी से परेशान लोगों को अपने शीतल स्पर्श से मानो थपकियां लगा -लगा
गर्मी का मौसम था। सुबह की ठंडी- ठंडी हवा रात की भीषण गर्मी से परेशान लोगों को अपने शीतल स्पर्श से मानो थपकियां लगा -लगा
आज सात दिन हो गये, पीने को कौन कहे-छुआ तक नहीं! आज सातवाँ दिन है, सरकार!तुम झूठे हो। अभी तो तुम्हारे कपड़े से महँक आ
वह पचास वर्ष से ऊपर था। तब भी युवकों से अधिक बलिष्ठ और दृढ़ था। चमड़े पर झुर्रियाँ नहीं पड़ी थीं। वर्षा की झड़ी में,
सर्दियों का समय था। एक झोपड़ी के दरवाजे पर बाप-बेटा बुझी हुई आग के सामने बैठे हुए थे। झोपड़ी के अंदर बेटे की पत्नी बुधिया